Silver Price 2025 : इसलिए रॉकेट की तरह भाग रहे चांदी के भाव, 2.50 लाख रुपए तक भी पहुंच सकते हैं

चांदी अब केवल कीमती धातु नहीं रही बल्कि यह औद्योगिक विकास और वैश्विक अर्थव्यवस्था की नब्ज बन चुकी है। अगर इसका कोई उचित विकल्प नहीं मिला तो चांदी के दाम ₹2.50 लाख प्रति किलो तक भी पहुंच सकते हैं।

Silver Price 2025 : इसलिए रॉकेट की तरह भाग रहे चांदी के भाव, 2.50 लाख रुपए तक भी पहुंच सकते हैं
सबको चौंकाते चांदी के दाम।

राजेश मूणत

इतिहास कहता है कि पिछले पच्चीस वर्षों में चांदी ने कई बार निवेशकों को चौंकाया और रुलाया है। कभी इसकी कीमतें आसमान छू गईं तो कभी गहरी गिरावट ने बाजार को हिला दिया। लेकिन चांदी अब निवेशकों की रुचि - अरुचि से आगे निकल गई है। बताया जाता है कि चांदी के भावों की वर्तमान तेजी इस धातु की औधोगिक खपत के कारण बनी है।

विगत वर्षों के हालातों पर नजर डालें तो साल 2000 से 2006 के बीच चांदी ने धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ी थी। 2009-10 में वैश्विक आर्थिक संकट के बाद आई रिकवरी से चांदी में जोरदार तेजी आई। वर्ष 2010 में तो चांदी के भावों में करीब 80 प्रतिशत तक की छलांग दर्ज की गई। उस दौर को अभी तक के दौर में सबसे बड़ा उछाल वाला माना जाता है।

आर्थिक उतार-चढ़ाव और वैश्विक निवेश प्रवृत्तियों की सटीक नब्ज

2011 के बाद तो हालात ही बदल गए। 2012 से 2015 लगातार गिरावट का दौर रहा। खासकर वर्ष 2013 में चांदी के भावों में लगभग 36 प्रतिशत की कमी आई। 2016 से 2019 तक का समय अपेक्षाकृत स्थिर रहा और बाजार में कोई बड़ा झटका नहीं आया। कोविड काल 2020 में चांदी ने एक बार फिर जोर पकड़ा और करीब 48 प्रतिशत तक बढ़त दर्ज की। इसके बाद 2021 में कुछ सुधार हुआ। 2022-23 में भाव लगभग स्थिर बने रहे लेकिन विगत वर्ष 2024 में औद्योगिक मांग बढ़ने से चांदी फिर करीब 20 प्रतिशत चढ़ी। कुल मिलाकर, पिछले ढाई दशकों में चांदी के भावों ने यह साबित किया है कि यह धातु आर्थिक उतार-चढ़ाव और वैश्विक निवेश प्रवृत्तियों की सटीक नब्ज दिखाती रही है।

10 वर्ष में 5 गुना बढ़े दाम !

2015 से 2025 के बीच चांदी के भावों में एक लंबी स्थिरता दर्ज की गई। वर्ष 2015 में जहां चांदी लगभग ₹37,000 प्रति किलोग्राम थी, वहीं 2020 के बाद यह लगातार बढ़ते हुए 2024 में ₹95,700 और वर्तमान (अक्टूबर 2025) में लगभग ₹1,85,000 प्रति किलोग्राम तक पहुँच चुकी है। इस तरह पिछले दस वर्षों में चांदी के भाव लगभग पाँच गुना बढ़ गए हैं।

इस कारण आया था भावों में उछाल

2015 से 2019 तक की औसत कीमतें ₹35,000 से ₹45,000 प्रति किलोग्राम के बीच झूलती रहीं। लेकिन कोविड महामारी के बाद वैश्विक आर्थिक अस्थिरता, ग्रीन एनर्जी सेक्टर में तेजी, इलेक्ट्रॉनिक्स और सोलर पैनल उद्योगों की बढ़ती मांग तथा निवेशकों की सुरक्षित संपत्ति (safe haven) की ओर झुकाव ने चांदी के बाजार में ऐतिहासिक उछाल ला दिया।

उत्कृष्ट विद्युत चालकता बड़ी खूब

भारत में चांदी की मांग का बड़ा हिस्सा औद्योगिक उपयोग से आता है— खासकर सौर पैनल, विद्युत उपकरण, बैटरी, ऑटोमोबाइल इलेक्ट्रॉनिक्स, मेडिकल उपकरण और रासायनिक प्रक्रियाओं में इसका भारी उपयोग होता है। वहीं पारंपरिक रूप से आभूषण, बर्तन और सिक्कों में भी इसका उपयोग जारी है। लेकिन हाल के वर्षों में सबसे अधिक मांग सोलर एनर्जी और इलेक्ट्रिक वाहन (EV) क्षेत्र से आ रही है। चांदी की उत्कृष्ट विद्युत चालकता इसकी बड़ी खूबी है और इसका कोई सटीक विकल्प फिलहाल उपलब्ध नहीं है।

भारत बड़ा उपभोक्ता, बड़ा आयातक

जहाँ तक उत्पादन का प्रश्न है, भारत चांदी का बड़ा उपभोक्ता देश तो है, परंतु उत्पादन में विश्व स्तर पर इसकी हिस्सेदारी सीमित (लगभग 2%) है। भारत में चांदी का प्रमुख उत्पादन राजस्थान, झारखंड और छत्तीसगढ़ में स्थित बहुधात्विक खदानों से होता है। सबसे अधिक उत्पादन राजस्थान के उदयपुर, भीलवाड़ा और जावर माइंस क्षेत्र से होता है, जिन्हें हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (HZL) संचालित करती है। वर्ष 2024 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 700–800 टन चांदी का वार्षिक उत्पादन हुआ, जबकि देश की कुल खपत 8,000 – 9,000 टन के आसपास रही — यानी लगभग 90% चांदी का आयात किया जाता है। यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार की हलचलें सीधे भारतीय बाजार पर असर डालती हैं।

...तो दो से ढाई लाख रुपए तक जा सकते हैं दाम !

वैश्विक स्तर पर, मैक्सिको, चीन, पेरू, रूस और ऑस्ट्रेलिया प्रमुख उत्पादक देश हैं। अकेला मेक्सिको दुनिया के कुल उत्पादन का लगभग 25% देता है। 2024 में वैश्विक चांदी उत्पादन करीब 26,000 टन रहा, जबकि मांग लगभग 32,000 टन तक पहुँच गई — यानी लगभग 6,000 टन का वैश्विक घाटा दर्ज किया गया। आपूर्ति-मांग के इसी अंतर ने चांदी की कीमतों को रॉकेट की रफ़्तार दी है। विशेषज्ञों का मत है कि यदि औद्योगिक मांग इसी गति से बढ़ती रही, तो आने वाले वर्षों में चांदी ₹2 लाख प्रति किलोग्राम से 2 लाख 50 हज़ार का स्तर पार कर सकती है।

औद्योगिक विकास की गति का संकेतक है चांदी के भाव की ऊँचाई

आज “ग्रीन एनर्जी सेक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स में खपत ने चांदी को औद्योगिक धातुओं में सबसे आकर्षक बना दिया है। इसका असर तब तक रहेगा जब तक ये उद्योग चांदी का विकल्प नहीं खोज लेते। सार यह है कि चांदी का भाव अब केवल एक कीमती धातु के रूप में नहीं, बल्कि आधुनिक तकनीकी बदलावों और वैश्विक आर्थिक समीकरणों का दर्पण बन चुका है। इसके भावों की ऊँचाई, आने वाले दशक में औद्योगिक विकास की गति का संकेतक मानी जा सकती है।

(पत्रकार एवं लेखक राजेश मूणत की फेसबुक वाल से साभार)