हिंदी दिवस व्यंग्य : भाषा की प्रत्यंचा पर प्रज्ञावतार की पकड़ -आशीष दशोत्तर
14 सितंबर को हम हिंदी दिवस मनाते हैं लेकिन आज-कल हिंदी दिवस मनाने का तरीका कुछ अलग ही है। इस व्यंग्य के माध्यम से जानें कि- भाषा की प्रत्यंचा पर प्रज्ञावतारों की पकड़ कितनी है।

यह उनका युग है। इस युग के वे ही प्रस्तावक हैं, वे ही संस्थापक, वे ही उन्नायक, वे ही प्रचारक और वे ही विस्तारक। युगीन साहित्यकार उसे ही कहा जाता है जो अपने युग की स्थापना के लिए इतने पदों को सुशोभित करे। विलक्षण व्यक्तित्व और कुशल कृतित्व के दम पर लोगों ने बहुत कुछ कर लिया, मगर वे अपने युगीन अस्तित्व को अपने तरीके से और अपने सलीके से गढ़ रहे हैं।
पाठ्यक्रमों से भाषा को गायब करने के दौर में वे अपनी कोशिशों से साहित्य में एक नए युग का सूत्रपात कर रहे हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी प्रत्यंचा पर पुख़्ता पकड़ बनाए रखने का कौशल उन्हें आता है। साहित्य को आधुनिक युग से आगे ले जाने वाले वे ही हैं। सिमटती भाषा को विराट स्वरूप देने की अद्भुत क्षमता उन्हीं में है। उनके प्रयासों से इस नए युग को संबल मिल रहा है। युग पुष्पित, पल्लवित हो रहा है। इस चमत्कारी उपलब्धि पर वे मन ही मन मुदित हैं, प्रफुल्लित भी। गौरवान्वित तो उन्हें पा कर भाषाई जगत है।
आने वाले वक्त में इस युग को उन्हीं के नाम से जाना जाएगा। वे प्रज्ञावतार हैं। अंट-शंट प्रतिभा के धनी। उनके पोर-पोर से प्रतिभा का प्रस्फुटन हो रहा है। जिस रूप में देखो प्रतिभा उनके भीतर से बाहर आ रही है। कहने वाले कहते हैं कि प्रतिभाओं को अवसर नहीं मिलते, मगर उनके लिए अवसरों की कोई कमी नहीं। वे कहते हैं, प्रतिभा अंट-शंट हो तो अवसर अनगिनत हैं।
उनकी अपनी प्रोफाइल है, उनका अपना स्टाइल है। वे बातों को घिसने में नहीं, पीसने में विश्वास रखते हैं। पीसते भी दरदरा हैं। महीन पीसने में उम्र खपा चुके कलम के पुजारियों के लिए यह सीखने और समझने-बूझने का मंत्र है। वे किसी भी विषय को उलझाते नहीं निपटाते हैं। विषय से भटकते नहीं विषय पर झपटते हैं। सोच, विचार, चिंतन, मनन, अध्ययन, पठन-पाठन जैसे 'आउटडेटेड' शब्द उनकी डिक्शनरी से 'डिलीट' कर दिए हैं। लेखन को 'प्रक्रिया' मानने वाले बेवकूफ वे नहीं। क्रिया से अधिक प्रतिक्रिया पर उनका जोर रहता है। प्रतिक्रिया भी तत्समय, त्वरित और तीव्र। यही प्रतिक्रिया उनकी स्थापना का मज़बूत आधार तैयार करती है।
सालों तक किसी प्लॉट को आप अपने दिमाग में फैलाते रहिए। महीनों तक उसे कागज़ पर उतारने की कोशिश करते रहिए। ढूंढ-ढूंढ कर प्रभावी शब्दों से उस प्लाट पर एक रचनात्मक इमारत खड़ी करते रहिए। उनके सामने आपकी मेहनत का ये महल दो सेकंड में ही धराशायी हो जाएगा। अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया "मज्जाई नी आया" से आपकी मेहनत का तीया-पांचा कर देंगे। बाद के सारे प्रतिक्रियावादी, आपकी रचना से अधिक उनकी प्रतिक्रिया को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। आपके किये कराए पर पोंछा फिर जाता है।
उन सी प्रतिभा भला और किसी में कहां? इसीलिए उनके फॉलोअर्स निरंतर बढ़ रहे हैं। इन्हीं के दम पर उन्हें यकीन है कि वे आने वाले समय में आधुनिक युग के बाद के 'अंट-शंट प्रतिभा युग' के आधार स्तंभ माने जाएंगे। अब आप इसे भले ही भाषाई पराभव युग से पहचानें, उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
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