यदि क्लेम देते समय हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी की नियत में आ जाए खोट और करे भुगतान में आनाकानी तो कानून में मिले अधिकारों का उपयोग कर ऐसे करें चोट
हेल्थ इंश्योरेंस मौजूदा दौर में जिंदगी का अनिवार्य हिस्सा हो गया है। यदि इंश्योरेंस कंपनी इसका क्लेम नहीं दे तो पॉलिसीधारक कानूनी अधिकार का उपयोग कर सकता है।

बीमा कंपनी ने आपका हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम देने इनकार कर दिया है तो पढ़ें यह खबर, ...क्योंकि हमें आपकी फिक्र है
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । जैसे-जैसे आधुनिकता आ रही है वैसे-वैसे बीमारियां भी बढ़ रही हैं। रहन-सहन और खान-पान और जिंदगी की भागदौड़ कई बीमारियों के मुख्य कारण हो गए हैं। बीमारी छोटी हो या बड़ी, लेकिन इनके इलाज का खर्च वहन करना आसान नहीं है। लोगों की जिंदगी भर की जमा पूंजी इसकी भेंट चढ़ जाती है। कोरोना जैसी बीमारियों ने तो स्थिति और भी भयावह कर दी है। ऐसे में रोटी, कपड़ा और मकान के अलावा हेल्थ इंश्योरेंस मूल आवश्यकता हो गई है।
ज्यादातर लोग अब हेल्थ इंश्योरेंस करवा रहे हैं ताकि जरूरत पड़ने पर उनका इलाज आसानी से हो सके। नतीजतन हेल्थ इंश्योरेंस की योजनाएं और कंपनियां बहुतायत में बाजार में आ चुकी हैं। कई बार देखने में आया है कि जब जरूरत पड़ती है तो यही कंपनियां अपने वायदे के मुताबिक हेल्थ इंश्योरेंस का क्लेम देने में आनाकानी करती हैं। अगर आपके साथ भी हुआ है ऐसा तो आप चिंता न करें और यहां बताए अनुसार अपने कानूनी अधिकारों का उपयोग करें।
कानूनी अधिकारों को जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी क्या हैं और ये कैसे काम करती हैं। दरअसल ये ऐसी संस्थाएं हैं जो स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर पॉलिसी लेने वाले से अनुबंध करती हैं। कोई भी अनुबंध बिना शर्तों के नहीं होता खासकर तब जब बात रुपए-पैसों के भुगतान से जुड़ा हो। यानी हेल्थ इंश्योरेंस करते समय ये कंपनियां ग्राहकों का शर्तों के अधीन बीमा करती हैं या एक वचन देते हैं उनके द्वारा दिए जाने वाले प्रीमियम के एवज में नियत अवधि के दौरान जब उन्हें इलाज के लिए राशि की जरूरत होगी तो वे उपलब्ध कराएंगी। राशि कीक सीमा भी नियत होती है जो इलाज के दौरान या उसके बाद देय हो सकती है।
कैशलेस इलाज की पॉलिसी की डिमांड ज्यादा
अब कैशलेस इलाज की अवधारणा पर ज्यादा काम हो रहा है और लोग भी यही पसंद करते हैं। इसमें ग्राहक के अस्पताल में भर्ती होने के बाद से ही इंश्योरेंस कंपनी सारे खर्च उठाती है। कंपनी इलाज पर व्यय होने वाली सारी राशि स्वयं ही अनुबंधित अथवा संबंधित अस्पताल को उपलब्ध कराती हैं जहां पॉलिसीधारक का इलाज हो रहा होता है। इलाज के दौरान होने वाले कुछ खर्च ऐसे भी होते हैं जो इंश्योरेंस कंपनी वहन नहीं करतीं। हालांकि इसके एवज में ग्राहक को एक प्रीमियम चुकाना होती है जो एक वर्ष तक के लिए रहती है। बाजार में व्यक्तिगत और सामूहिक इंश्योरेंस की योजनाएं उपलब्ध हैं।
सरकार के नियमों का पालन करना है बंधनकारी
कई बार देखने में आया है कि पॉलिसी बेचने के दौरान तो इंश्योरेंस कपनियां काफी लोकलुभावने वादे करती हैं लेकिन इलाज के दौरान या उसके बाद क्लेम देने से इनकार कर देती हैं। ऐसा कुछ परिस्थितियों पर निर्भर करता है। ग्राहकों को होने वाली ऐसी परेशानियों और इंश्योरेंस कंपनियों के एकाधिकार या अनियमितता पर रोक लगाने के उद्देश्य से ही सरकार ने कुछ नियम लागू किए हैं। हर श्योरेंस कंपनी के लिए इन नियमों का पालन करना अऩिवार्य है। यानी वे सरकार के अधीन ही कार्य करती हैं। बावजूद ये कंपनियां कई बार शर्तों का उल्लंघन बताकर क्लेम निरस्त कर देती हैं या फिर इलाज के दौरान अस्पताल में भुगतान के लिए भी मना कर देती हैं। यह स्थिति पॉलिसीधारक के लिए काफी परेशानी वाली बन सकती है।
प्रायः कब निरस्त हो सकता है क्लेम
- पॉलिसी में दी गई अवधि के बाद व्यक्ति का बीमार होना।
- नियत समय पर इंश्योरेंस कंपनी को अस्पताल में भर्ती कराने की जानकारी नहीं देना।
- बिल में अनावश्यक दवाइयां अथवा जांच आदि होने पर।
- यदि पूर्व में कोई बीमारी है जो पॉलिसी लेते समय छिपाई गई हो।
- जरूरी दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराने पर
सभी शर्तें-नियम ठीक से पढ़ें, अपनी जानकारी छिपाएं नहीं
- लोन लेना हो या इंश्योरेंस, सभी में कई शर्तें होती हैं। इन्हीं शर्तों के आधार पर ही आपको डिफाल्टर बनाती है। इसलिए जब भी कोई पॉलिसी लें या उसका फॉर्म भरें तो उसकी शर्तों को अच्छी तरह पढ़ लें।
- एजेंट या इंश्योरेंस कंपनी के एम्पलाई द्वारा यदि कुछ बताया जा रहा है या शर्तों पर हस्ताक्षर करवाए जा रहे हैं तो उनका रिकॉर्ड अवश्य रखें ताकि जरूरत पड़ने पर काम आ सकें। संभव हो तो रिकॉर्ड कर लें और फोटोकॉपी करवा लें।
- हेल्थ पॉलिसी लेते समय अपनी पुरानी बीमारी या मौजूदा बीमारी के बारे में न छिपाएं। अस्पताल में भर्ती हने पर आपका यह झूठ पकड़ा जा सकता है। ऐसे में इंश्योरेंस कंपनी क्लेम का भुगतान करने से रोक सकती है।
...फिर नैतिकता को परे रख दे इंश्योरेंस कंपनी तो लें उपभोक्ता फोरम की शरण
ऐसे मामले भी आते हैं जब सबकुछ सही होते हुए भी इंश्योरेंस कंपनी क्लेम देने में आनाकानी करती है। यदि इस तरह कोई कपनी आपका क्लेम रोकती है तो परेशान न हों बल्कि ग्राहक को मिले कानून का उपयोग करें। ऐसा कर के आप अपने नुकसान की भरपाई करवा सकते हैं। वैसे भी बाजारवाद के दौर में ग्राहक की संतुष्टि ही सबकुछ है और इसके लिए उसे अधिकार संपन्न भी बनाया गया है। यदि आपका क्लेम खारिज कर दिया जाए तो आप उपभोक्ता फोरम में वाद दायर कर सकते हैं। फोरम की स्थापना उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए ही उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत हुई है। अधिनियम की धारा 35 के अंतर्गत आप याचिका दायर कर सकते हैं। इसके लिए किसी प्रकार की कोर्ट फीस आदि का भुगतान नहीं करना पड़ता। बता दें कि- इस प्रकार के वाद सामान्य मुकदमों की तरह ही चलते हैं और प्रायः एक साल के भीतरह इनका निराकरण भी हो जाता है।
... तो हो सकता है ग्राहक के पक्ष में एकतरफा फैसला
ग्राहकों के साथ हुई किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी, नियमों की अनदेखी, हितों की हानि, सेवा में कमी आदि पर अन्य किसी भी न्यायालय में प्रकरण नहीं चल सकता। यह सिर्फ उपभोक्ता फोरम के अधिकार क्षेत्र का मामला है। अन्य मामलों की तरह यहां प्रक्रिया भी ज्यादा नहीं हैं। वाद दायर होने के बाद सेवाप्रदाता को दो बार नोटिस जारी होते हैं। उसे ग्राहक द्वारा लगाए आरोपों के संबंध में अपना जवाब प्रस्तुत करना होता है। यदि इंश्योरेंस कंपनी यह साबित नहीं कर पाने में सफल होती है कि शर्तों का उल्लंघन हुआ है तो फोरम ग्राहक के पक्ष में फैसला सुनाती है। यदि कंपनी नोटिस जारी करने के बाद भी जवाब देने के लिए फोरम में उपस्थित नहीं होती है तो फोरम ग्राहक के पक्ष में एक-तरफा फैसला सुनान देता है।
राज्य उपभोक्ता फोरम में अपील का अधिकार भी
ऐसे में आदेश का पालना करना इंश्योरेंस कंपनी या अन्य सेवाप्रदाता के लिए अनिवार्य हो जाता है। प्रायः फोरम इंश्योरेंस कंपनी को अस्पताल का सारा खर्च उठाने का आदेश देती है जो पॉलिसीधारक द्वारा किया गया होता है। वाद व्यय का भुगतान भी कंपनी को ही करना पड़ता है। यदि चाहे तो वह राज्य उपभोक्ता फोरम में अपील प्रस्तुत कर सकती है। यह अपील ग्राहक भी कर सकता है यदि वह जिला उपभोक्ता फोरम के फैसले से संतुष्ट नहीं हो। राज्य स्तर पर हुआ आदेश अंतिम होता है जिसे मान्य करना जरूरी है।