संस्कृति राष्ट्र के जन-समुदाय की आत्मा होती है, भाषा साहित्य और कलाएं उसके माध्यम हैं- प्रो. डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा
सृजन कॉलेज के पत्रकारिता विभाग के प्रमुख डॉ. मोहन परमार की चौथी पुस्तक चिंतन के गवाक्ष से का विमोचन विक्रम विश्विद्यालय के कुलानुशासक प्रो. डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने किया।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । संस्कृति किसी भी राष्ट्र के जन समुदाय की आत्मा होती है। संस्कृति में यह भी उच्चतम चिंतन का मूर्त रूप है तो भाषा साहित्य और कलाएं उसके सशक्त माध्यम है। भारतीय चिंतन धारा में संस्कृति संकल्पना अत्यंत व्यापक है। हमारे यहां संस्कृति को पूर्णतया का पर्याय माना गया है। संस्कृति महज कल्चर नहीं है। इसकी अवधारणा कल्चर की अपेक्षा कहीं अधिक व्यापक और युक्तिसंगत है। इसमें पंरपरा, भाषा, साहित्य, नाट्य, कला और शिल्प से लेकर विज्ञान, मूल्य और दर्शन तक सब अंतनिर्हित हो जाते हैं।
उक्त बात प्रो. डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ( कुलानुशासक एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन) ने साहित्यिक संस्था अनुभूति द्वारा आयोजित प्रो. डॉ. मोहन परमार की चौथी पुस्तक ''चिंतन के गवाक्ष से'' के विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किए। प्रो. शर्मा ने कहा कि संस्कृति एक अखंड और सार्वभौमिक है किन्तु उसकी साधना के अलग-अलग मार्गो के रहते हुए वह अलग-अलग जानी समझी जाती है। इसी दृष्टि से भारतीय संस्कृति को संस्कृति की अनवरत यात्रा में भारतीय मार्ग के रूप में देखा जा सकता है। भारतीय संस्कृति अनेक शताब्दियों से विश्व संस्कृति के मूलाधारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आ रही है।
प्रो. शर्मा ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास ने सम्पूर्ण विश्व को केन्द्र में रखकर रामचरित मानस की रचना की है, जो संसार स्तर पर मान्य है। उन्होंने कहा कि मैं संस्था अनुभूति के कार्यक्रम में उपस्थित होने से अभिभूत हूं। पुस्तक ''चिंतन के गवाक्ष से'' में संकलित लेखों, निबंधों में कई ज्ञात-अज्ञात पक्षों की शोधपूर्वक नवीन स्थापना की गई है जो प्रशंसनीय है। शर्मा ने कई निबंधों की विशिष्टाओं को अपने उद्बोधन में उदाहरण सहित प्रस्तुत की। यह पुस्तक नई पीढ़ी के लिए साहित्यिक दृष्टि से विद्यार्थियों के लिए मार्गदर्शन प्रदान करेगी।
साहित्य की दृष्टि से रोचक व पठनीय पुस्तक- डॉ. चांदनीवाला
अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षाविद डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला ने कहा कि चितंन के गवाक्ष से पुस्तक के 27 लेखों, निबंधों में धर्म, दर्शन, वेद साहित्य, संस्कृति के विभिन्न सौंपानों का दिग्दर्शन होता है। यह पुस्तक साहित्य की दृष्टि से रोचक व पठनीय है। आपने आशा व्यक्त की है कि साहित्य के पाठक इसे तनमन्यता के साथ आत्मसात करेंगे।
नगर में साहित्यकारों का एक बड़ा संगठन बनाएं- झालानी
विशिष्ट अतिथि समाजसेवी अनिल झालानी (चेयरमैन- सृजन कॉलेज) ने कहा कि पुस्तक के कुछ लेखों, निबंधो में हमें भारतीय समाज, साहित्य, आध्यात्म, धर्म, ज्ञान, विज्ञान की सामाजिक चेतना का परिचय प्राप्त होता है जो महत्वपूर्ण है। उन्होंने साहित्यकारों को परामर्श दिया कि नगर में साहित्यकारों का एक बड़ा संगठन निर्मित किया जाए जिसके आयोजन में साहित्य के विभिन्न पक्षों पर सकारात्मक चिंतन किया जाना चाहिए।
धर्म, संस्कृति व आध्यात्म से जोड़ने देने वाले लेख- परिहार
विशेष अतिथि राधेश्याम परिहार जिलाध्यक्ष गुजराती सेन समाज एवं अनंत नारायण मंदिर सेवा समिति रतलाम ने कहा कि किताब के कुछ लेखों को मैंने देखा है जो हमें वर्तमान भागमभाग व यांत्रिक जीवन की आपाधापी में धर्म संस्कृति व आध्यात्म से जोडऩे की प्रेरणा देते हैं। विशेष अतिथि अनीता रजनीश परिहार (अध्यक्ष- नगर परिषद, नामली) ने कहा कि हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने चिंतन एवं तप तपस्या करके कई बार भगवान को धरती पर आकर उन्हें जन कल्याण के लिए वरदान देने के लिए बाध्य किया। भारतीय संस्कृति हमें जीवन जीने की कला सिखाती है। हमें उसके अनुरूप जीवन ढालने का प्रयास करना चाहिए। इसी से हमारा जीवन सार्थक होगा।
नैतिकता की दिशा में चलने के लिए प्रेरित करते हैं वेद और धर्मग्रंथ
वरिष्ठ चिंतन मनीषी शिवकांता भदौरिया ने प्रमुख समीक्षक वक्ता के रूप में किताब के लेखों, निबंधों पर विद्वतापूर्वक सूक्ष्मता से विश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि भारत की भूमि सदैव से ही चिंतन की पावन धरा रही है। हमारे वेद, धर्म ग्रंथ हमें जीवन में उस नैतिकता की दिशा में चलने के लिए प्रेरित करते हैं। चिंतन के गवाक्ष से पुस्तक अपने आप में साहित्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण कड़ी सिद्ध होग।
डॉ. परमार की पुस्तक हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि- डॉ. तिवारी
डॉ. शोभना तिवारी (निदेशक- डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन स्मृति शोध संस्थान, रतलाम) ने संचालन करते हुए अपनी पुस्तक पर अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि डॉ. मोहन परमार की पुस्तक चिंतन के गवाक्ष से हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि है। पुस्तक के हर आलेख, निबंध में साहित्य के मूलभूत पक्षों को उद्घाटित किया है और सम्पूर्ण साहित्य के इतिहास पर दृष्टिपात करते हुए मानव मन के मनोवैज्ञानिक पक्षों को गंभीरता के साथ उकेरा गया है। डॉ. परमार इस पुस्तक के माध्यम से राम राज्य की संकल्पना को साकार रूप में देखते हैं। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार समीक्षक प्रणयेश जैन ने वर्तमान में साहित्य की दशा और दिशा की स्थिति पर बोलते हुए कहा कि हमें रचना पाठ के उपरांत चिंतन कर आत्मावलोकन करना चाहिए। किन्तु वर्तमान में इसके उलट स्थिति है। जो हम सबके लिए चिंतनीय है।
27 लेखों-निबंधों का संकलन है चिंतन के गवाक्ष से...- डॉ. परमार
चिंतन के गवाक्ष से पुस्तक के लेखक प्रो. डॉ. मोहन परमार ने कहा कि सौरमंडल में 27 नक्षत्र हैं जिनका अपना-अपना महत्व है। उसी प्रकार इस विमोचित किताब में 27 लेखों, निबंधों का संकलन है। इसके माध्यम से शाश्वत सनातन धर्म और साहित्य एवं सामाजिक सरोकारों के विभिन्न पक्षों पर व्याख्या करने का प्रयास किया गया है। डॉ. परमार ने आशा व्यक्त की है कि साहित्य के सुधिजन पाठक इसे सहज स्वीकार करेंगे।
प्रो. डॉ. शर्मा का हुआ अनुभूति साहित्य सम्मान
प्रारम्भ में अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती के प्रतिमा पर माल्यार्पण व दीप प्रज्जवलन कर कार्यक्रम की शुरूआत की गई। संस्था के संरक्षक रमन सिंह सोलंकी (सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट इंदौर) ने स्वागत उदबोधन दिया। इसके उपस्थित अतिथियों का परिचय डॉ. शोभन तिवारी, श्री पियुष जैन द्वारा दिया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ. प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा द्वारा हिन्दी साहित्य भाषा के विकास में उल्लेखनीय योगदान देने पर संस्था द्वारा ''अनुभूति साहित्य सम्मान'' से अलंकृत किया गया। सम्मान-पत्र का वाचन कवि गीतकार शांतिलाल गोयल (शांतनु) ने कियॉ। इस मौके पर उपस्थित साहित्य संस्थाओं के पदाधिकारियों द्वारा विशेष अतिथियों का शॉल भेंट कर सम्मान किया गया। पुस्तक मुद्रक मुकेश शर्मा, आवरण चित्र अक्षय संयोजन, पवन श्री कम्प्यूटर्स के श्री सतीश वर्मा का भी सम्मान किया गया।
इन्होंने किया अतिथियों का स्वागत
अतिथियों का स्वागत अब्दुल सलाम खोकर, रामचन्द्र गेहलोत (अम्बर), सतीश जोशी, डॉ. कैप्टन एन. के. शाह, डॉ. प्रदीप सिंह राव, डॉ. खुशालसिंह पुरोहित, डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया, आशीष दशोत्तर, मयूर व्यास, अखिलेश चंद्र शर्मा (स्नेही), प्रकाश हेमावत, जुझारसिंह भाटी, नरेन्द्र सिंह पंवार, बाबूलाल परमार (रावटी), रमेश मनोहरा (जावरा), दिनेश बारोठ (सरवन), श्रेणिक बाफना, प्रतिभा चांदनीवाला, ज्योत्सना निरंजनी, डॉ. दिनेश तिवारी, नीरज कुमार शुक्ला, श्यामसुंदर भाटी, जगदीश चौहान, गौरीशंकर खिंची, अशोक निगम, डॉ. सरोज खरे, निसर्ग दुबे, सुरेश माथुर, रामप्रताप सिंह राठौर, रोड़ीराम प्रजापति (सैलाना) आदि के द्वारा किया गया। कार्यक्रम में रतलाम जिले के साहित्यकार व प्रबुद्ध वर्ग बड़ी संख्या में उपस्थित थे। अंत में आभार संरक्षक दिनेश जैन ने माना।