नीर_का_तीर : रतलाम में नए भाजपा जिला अध्यक्ष की नियुक्ति के क्या हैं मायने, ‘समन्वय का कमल’ खिलेगा या ‘गुटबाजी के कांटे’
रतलाम में भाजपा जिला अध्यक्ष के रूप में प्रदीप उपाध्याय की नियुक्ति की गई है। यह नियुक्ति आगामी दिनों में क्या परिणाम देगी, यह जानने के लिए यह टिप्पणी एक बार अवश्य पढ़ें।
नीरज कुमार शुक्ला
बीते कुछ महीनों में रतलाम की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। जनसंघ और भाजपा के लिए जिंदगी खपा देने वाले डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडेय की ही तरह उनके पुत्र डॉ. राजेंद्र पांडेय के हिस्से भी चौथी बार भी सिर्फ विधायकी ही आई। वहीं, ‘हर तरह से सक्षम’ माने जाने वाले भैया जी यानी चेतन्य काश्यप तीसरी बार में ही मंत्री बन गए। नतीजतन, रतलाम की राजनीति के सुर भी बदल गए। जो लोग काश्यप का टिकट कटने की कामना से घी के दीपक जला रहे थे, बाद में उन्हें ही उनके स्वागत के लिए उत्साहित होते और शान में कसीदे गढ़ते देखा गया। कमोबेश, ऐसी ही स्थिति भाजपा जिला अध्यक्ष बदलने के बाद भी नजर आ रही है। इस नई नियुक्ति के क्या मायने हैं, यह पार्टी में समन्वय का कमल खिलाएगी या गुटबाजी के काटें, यह आगामी दिनों में पता चलेगा।
देश के तीन प्रमुख राज्यों (मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान) में मुख्यमंत्री चयन को लेकर जब चौंकाने वाले निर्णय हुए हों तो रतलाम भाजपा में ‘सीनियर’ के बजाय ‘जूनियर’ को तवज्जो मिलना बहुत छोटी बात मानी जाएगी। खैर, हम बात करते हैं ताजा घटनाक्रम की। कांग्रेस में जितने लोग उतने ही गुट हैं। इस लिहाज से भाजपा की स्थिति थोड़ी बेहतर है यहां गुटों की संख्या प्रायः सीमित ही रहती है। संगठन में कोई नियुक्ति हो और यह चर्चा और कयास लगना स्वाभाविक ही है कि उससे किस गुट को महत्व मिलेगा, कौन कमजोर होगा या फिर सभी गुटों में समन्वय होगा। ऐसे कयासों और चर्चाओं का आधार संबंधित व्यक्ति का आचरण, काम करने के तौर-तरीके, व्यवहार, संलग्नता और पुरानी घटनाएं होती हैं।
कुछ घंटे पहले ही रतलाम जिला भाजपा की कमान दो कार्यकाल से महामंत्री प्रदीप उपाध्याय को सौंपी गई है। बदलाव होते ही राजीतिक गलियारों में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। उपाध्याय को मिली नई जिम्मेदारी के साथ ही लोग अपने ‘अनुभवों की कसौटी’ पर उन्हें परख रहे हैं और अपने ‘मतलब की तराजू’ पर तौल रहे हैं। इस नियुक्ति के हितार्थ जाने, समझे, जांचे और गिनाए जा रहे हैं। जितने मुंह उतनी बातें, कुछ हमारे कानों तक भी आईं।
इस वफादारी को क्या नाम दें
कहा जा रहा है कि जिला अध्यक्ष नियुक्ति होते ही प्रदीप उपाध्याय सबसे पहले पूर्व गृह मंत्री एवं भाजपा के कद्दावर नेता रहे हिम्मत कोठारी के पैलेस रोड स्थित निवास पहुंचे। यह वही जगह है जहां से कभी भाजपा नियंत्रित होती थी लेकिन बाद में एक दौर ऐसा भी आया जब महात्वाकांक्षियों ने किनारा कर लिया था दूरिया बना ली थीं। इसके बाद से भाजपा में सत्ता का केंद्र स्टेशन रोड स्थित विसाजी मेंशन सिफ्ट हो गया था और आज भी बरकरार है। चर्चा है कि उपाध्याय यहां कोठारी परिवार को उनके प्रति अपनी पुरानी ‘वफादारी’ याद दिलाने पहुंचे थे। कोठारी परिवार के तीनों प्रमुख सदस्यों ने उनका स्वागत किया। उन्होंने भी सोशल मीडिया पर प्रदर्शित करने के लिए तीनों के साथ अलग-अलग फोटो खिंचवाए। जैसे ही लोगों को यह पता चला तो उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि- ‘अब जिला भाजपा में हिम्मत जी का दबाव / प्रभाव फिर बढ़ेगा और काश्यप जी के लिए नया टेंशन शुरू हो गया है। यानी कोठारी से उपाध्याय की पुरानी वफादारी मंत्री काश्यप की छाती पर मूंग दलेगी।’ यह वैसी ही टेंशन होगी जैसी रतलाम विकास प्राधिकरण (RDA) अध्यक्ष ‘अशोक पोरवाल’ ने दे रखी है।
कस्मे, वादे, प्यार, वफा सब....
इतिहास बताता है कि रतलाम जिले की भाजपा जोशी (पूर्व मुख्यमंत्री पं. कैलाश जोशी) और पटवा (पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा) की गुटीय राजनीति से प्रभावित रही है। ऐसे में महज 35 किलोमीटर की दूरी में भी हिम्मत कोठारी और डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडेय के बीच वैचारिक मतभिन्नता रही है। इसका असर संगठन में देखने को मिलता रहा है। इसके इतर, प्रदीप उपाध्याय दोनों ही परिवारों (कोठारी और पांडेय) को साधने में सफल रहे। इसके बाद जब सत्ता का केंद्र पैलेस रोड से विसाजी मेंशन शिफ्ट हुआ तो, उन्होंने यह प्रदर्शित करने की पूरी कोशिश की कि उनकी भी आस्था बदलकर अब इस ओर हो गई हैं। अभिनेता ‘प्राण’ पर फिल्माया गया गीत ‘कस्मे वादे प्यार वफा सब बाते हैं बातों का क्या...’ करा जिक्र यहां मौज़ू लगता। यानी किसका, किससे और कब मोह भंग हो जाए या लगन लग जाए, कहा नहीं जा सकता। राजनीति में ऐसे दावे करना नादानी ही कहलाएगी।
पुराने से तो नए के ‘दाग’ ही अच्छे हैं
नई जिम्मेदारी मिलने के बाद उपाध्याय के कार्य-व्यवहार, आस्था-विश्वास आदि में कितना बदलाव होगा, यह कहना मुश्किल है। फिर भी पार्टी से जुड़े लोगों का कहना है कि बड़ी-बड़ी मूछों वाले ‘ठाकुर साहब’ से तो छोटी मूछों वाले ‘भैया’ सभी को साधने में सफल रहेंगे। दरअसल, लोगों को साध लेने के उपाध्याय के इस गुण को उनसे ‘राजनीतिक ईर्ष्या’ रखने वाले ‘चापलूसी’ का नाम देते हैं। भला, अब हम यह कहने वालों की जुबान कैसे पकड़ें कि- ‘हिम्मत कोठारी जैसे बड़े नेता का वरदहस्त होते हुए भी जो पार्षद के चुनाव में बुरी तरह पराजित हुआ हो, उसे ‘पद रूपी आशीर्वाद’ ऐसे ही तो नहीं मिले होंगे। अब यह देखने वाली बात होगी कि रतलाम भाजपा में इस नियुक्ति से ‘समन्वय का कमल’ खिलेगा या ‘गुटबाजी के कांटे’ उगेंगे।