नीर-का-तीर : कहानी एक बरसाती मेंढक के परिपक्व चुनावी मेंढक बनने की

इस चुनावी माहौल में कहीं प्रचार का शोर-शराबा है तो कहीं लोग नेताओं और राजनीतिक पार्टियों के पुराने वादों के पूरे नहीं होने से खिन्न हैं। अगर आप भी ऐसा कुछ महसूस कर रहे हैं तो यह पोस्ट आपका मनोरंजन करने में सहायक हो सकती है, अतः पढ़िए और आनंद लीजिए।

नीर-का-तीर : कहानी एक बरसाती मेंढक के परिपक्व चुनावी मेंढक बनने की
कहानी एक बरसाती मेंढक के चुनावी मेंढक बनने की।

नीरज कुमार शुक्ला

प्रकृति की एक बिरली रचना है मेंढक ! ऐसा जीव जिसे शायद ही कोई अनोखा व्यक्ति होगा जो इसे अथवा इसके व्यक्तित्व के बारे में न जानता हो। जंतु विज्ञान में इस अभूतपूर्व हस्ती की 5 हजार से अधिक प्रजातियां बताई गई हैं। हालांकि, मैं सिर्फ दो ही प्रजाति के मेंढकों को जानता हूं, 1. बरसाती मेंढक और 2. चुनावी मेंढक। इन दिनों दोनों ही किस्म के मेंढक यत्र-तत्र-सर्वत्र देखे जा सकते हैं। एक मेंढक तो हमारे घर तलक भी आ पहुंचा। चुनावी दौर में यह कोई नई बात नहीं है लेकिन जो कुछ हमारे साथ घटित हुआ वह जरूर खास है।

किस्सा यूं है, कि- कुछ वर्ष पहले एक रात हम वर्क-टू-होम कर रहे थे। समय रात के 12.45 बजे का रहा होगा। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। हमनें आसपास नजरें घुमाईं तो पाया कि साहबजादे और हमारी जिंदगी की मल्लिका सो रही हैं। हम भी ठहरे बड़े वाले आलसी, इसलिए जहां थे वहीं बैठे रहे। अगले ही पल दूसरी दस्तक हुई। इस बार दस्तक का प्रयास थोड़ा प्रभावी था। मजबूरन हमें ही उठकर दरवाजा खोलना पड़ा परंतु बाहर कोई नजर नहीं आया। चारों तरफ नजर दौड़ाना व्यर्थ ही रहा। हवा तेज थी सो दस्तक को भ्रम मान कर दरवाजा बंद करने लगा।

दरवाजा बंद होता उससे पहले ही एक एक भर्राई सी आवाज कानों में पड़ी- 'महोदय, ऊपर नहीं, यहां नीचे देखिए। मैं यहां हूं, आपके कदमों के पास।'

नीचे देखा तो एक लहू-लुहान मेंढक वहां बैठा था और हमारी ओर याचक की तरह देख रहा था। हाल-बेहाल देख उसे अपने हाथों में उठा लिया और दरवाजा बंद कर लिए। फटाफट एक कटोरी में पानी गर्म किया और रुई का फाहा लेकर उसके जख्मों को साफ करने लगे। अभी फाही उसके घावों पर स्पर्श ही हुआ था कि उसकी चीख निकल गई। सर, काफी दर्द था चीख में। स्नेह रूपी मरहम लगते ही उसके मेंढक के चेहरे पर राहत व सुकून के भाव नजर आने लगे।

जब लगा कि मेंढक बात कर पाने की स्थिति में है तो उसकी इस दशा का हाल पूछ लिया। पहले तो वह चुप रहा लेकिन जब उसे यह अहसास हो गया कि अब वह सुरक्षित हाथों में है तो आपबीती सुना डाली।

मेंढक दबी आवाज में बोला- 'हमारे क्षेत्र के एक सफेदपोश ने चुनाव लड़ने के लिए नामांकन दाखिल किया है। निर्वाचन विभाग से उसे चुनाव चिह्न मेंढक दिया गया है।

'तो इसमें बुराई क्या है ? चुनाव चिह्न के रूप में मेंढक की तस्वीर छपेगी। इससे तो मेंढक जाति का मान-सम्मान बढ़ेगा।' हमने कहा।

हमारी बात उसे रास नहीं आई। हमारी बात काटते हुए मेंढक ने कहा- 'नहीं श्रीमान्, यह खुशी की बात नहीं बल्कि मुसीबत का सबब है। दरअसल, उक्त सफेदपोश के चुनाव चिह्न वाले मेंढक की शक्ल मुझसे मिलती है। मेरी इस दुर्दशा का कारण यही है।'
सो कैसे ?’ हमने पूछा।

मेंढक बोला- 'आप तो जानते ही हैं कि मेंढक जाति किसी का अच्छा होत नहीं देख सकती। जरा सी भी शोहरत या उपलब्धि मिल जाए या मिलने के आसार हों तो उसकी टांग खींचना शुरू कर देते हैं। हमारी बिरादरी के सारे मेंढकों ने भी इस परंपरा को काबिज रखते हुए हुए मेरी टांग खींचनी शुरू कर दी है। उन्हें लगता है कि चुनाव चिह्न वाले मेंढक हम ही हैं। सभी को बहुत समझाया लेकिन वे समझने को तैयार ही नहीं हैं। हम जैसे-तैसे बचते-बचाते आपकी शरण में आया हूं। इस उम्मीद से कि आप मदद अवश्य करेंगे। आप तो पत्रकार हैं, लेखक हैं, आपके पास तो हर मर्ज की दवा होती है।

खैर, मेरी छोड़िए, अपनी बताइए, आप इतनी रात तक क्यों जाग रहे हैं ?' (मेंढक ने सवाल दागा)

हम तो रोज ही देर रात तक जागते हैं। अभी चुनावी माहौल है तो सोचा इसी पर कुछ लिखूं। एक आर्टिकल लिख रहा हूं। शीर्षक है- बरसाती मेंढक बनाम चुनावी मेंढक

हम आगे कुछ और कह पाते उससे पहले ही वह जोर से चिल्लाया, मानों किसी ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो। बोला- 'मैं तो आपको नेकदिल इनसान समझ रहा था लेकिन आप तो हम बेगुनाह मेंढकों की तुलना चुनावी मेंढकों से कर रहे हैं। हम मेंढक बेशक दूसरे मेंढक की उपलब्धि पर उसकी टांग खींचें पर एक-दूसरे पर कीचड़ नहीं उछालते। हम अपने निजी स्वर्थ के लिए अपना ईमान गिरवी नहीं रखता और न ही भाई-भाई को लड़वाते ही हैं। धर्म-संप्रदाय के नाम पर दंगे-फसाद करवाने की कला से हम कोसों दूर हैं।

हम मेंढक तो हर साल बारिश में और कभी-कभी शुष्क मौसम में भी नजर आ जाते हैं लेकिन चुनावी मेंढक चुनाव के चुनाव ही प्रकट होते हैं। चुनाव जीतने या हारने के बाद पांच साल में यदि ये किसी को दर्शन दे दे तो वह परम् सौभाग्यशाली है। झूठे वादे करने के मामले में तो इनका कोई सानी ही नहीं है। रंग बदलने के मामले में गिरगिट भी इनसे पीछे है। दलों के दलदल में अठखेलियां करना इनका मुख्य शगल है। अब आप ही बताइये, क्या हम जैसे बरसाती मेंढकों से चुनावी की तुलना करना किसी भी दृष्ट से न्यायसंगत है?

श्रीमान्, हम पर इतनी बड़ी तोहमत मत लगाइए। वरना हमें आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ेगा। हम पहले ही परेशान हैं अपने अस्तित्व को बचाने के लिए।' इतना कह कर वह रुक गया। लगा उसकी बात पूरी हो गई।

मैं कुछ कहता- उससे पहले ही उसने गहरी सांस ली और फिर शुरू हो गया, बोला- 'जिसे देखो हमारे कंधे पर बंदूक रखकर निशाना लगाना चाहता है। आप जैसे लेखक और पत्रकार हमारे व्यक्तित्व पर लेख लिखकर ख्याति आर्जित करना चाहते हैं। मेडिकल के छात्र डॉक्टर बनने के लिए प्रयोगशाला में हमारे खंड-खंड कर देते हैं। हम यह सोचकर प्रतिकार नहीं करते कि चलो हमारा मरना किसी के तो काम आ रहा है। यह कोई नहीं जानता कि मरने के बाद हमारी आत्मा भटकती रहती है हमें खंड-खंड करने वाले डॉक्टर, मास्टर, लेखक-पत्रकार हमें झूठी श्रद्धांजलि देना भी उचित नहीं समझते। आपको लिखना ही है तो हमारी प्रजाति के त्याग-बलिदान और बचाने के लिए लिखिए। हमारी प्रजाति आपको दुआएं देगी।' इतना कहकर मेंढक ऐसे चुप हो गया जैसे किसी ने उसकी आवाज छीन ली हो।

वाकई, दम था उसकी बेबाक बयानी में। इसका असर यह हुआ कि हमारी कलम ने आगे कुछ भी लिखने से इनकार कर दिया। इसलिए लिखने का विचार त्यागकर मेंढकराज को ससम्मान विदा किया और सो गया।

अगली सुबह दरवाजे पर फिर रात जैसी जानी-पहचानी दस्तक हुई। शायद दूध वाला होगा, यह सोचकर दरवाजा खोला तो चौंक गया। चंद घंटे पहले जो बरसाती मेंढक चुनावी मेंढकों को कोस रहा था वही सफेद झक कुर्ते-पजामे में खादी की टोपी लगाए हाथ जोड़े सामने खड़ा था। चेहरे पर कुटिल मुस्कान कुछ और ही बयां कर रही थी।

उसने हमें कुछ भी पूछने का मौका नहीं दिया और बोला- 'श्रीमान, आप हमारी वेश-भूषा देखकर चौंकिए मत। अब मैं भी चुनावी मेंढक बन गया हूं और अपने अपने इलाके से चुनाव लड़ रहा हूं।

उसकी बात सुनकर हम हैरान थे। सवाल भरी निगाहों से उसकी तरफ ही देखे जा रहे थे। उसने हमारे मन के भाव पढ़ लिए थे। उसने कहा- 'रात को आपके पास से घर पहुंचा तो पता चला कि चुनाव लड़ने वाले सफेदपोश चुनावी मेंढक ने अपने प्रचार के लिए एडवांस में ही पोस्टर छपवा लिए। उसने नामांकन दाखिल कर चुनाव चिह्न मेंढक मांगा है और उसे उम्मीद है कि उसे यह मिल भी जाएगा। अब हुआ यूं कि प्रिंटिंग प्रेस की त्रुटि के कारण चुनाव चिह्न (मेंढक) की जगह प्रत्याशी का और प्रत्याशी की जगह चुनाव चिह्न छप गया। मैंने सोचा क्यों न इसका फायदा उठाया जाए। इसलिए सारे पोस्टर रद्दी के भाव खरीद लिए। नामांकन भी दाखिल कर दिया है और चुनाव चिह्न वही चुनावीं मेंढक मांगा है। अब चुनाव चिह्न मिला तो ठीक और नहीं मिला तो कम से मैं प्रचारित तो हो ही जाऊंगा।'

'मेरे इस कदम से पूरी मेंढक प्रजाति खुश है। जैसा समर्थन मिल रहा है, उससे मुझे अपनी जीत पर गले-गले तक विश्वास है। जीतने के बाद आपको अपना पी.ए. बनाऊंगा। इसलिए आप मुझे वोट देना न भूलें। इतना कह कर वह अगले घर की ओर बढ़ चला।'

राजयोग देखिए, दो दिन बाद ही चुनाव चिह्न का आवंटन हुआ और उसे वही चुनाव चिह्न मिल गया जो उसने चाहा था। चुनाव भी जीत गया। एक बार फिर चुनाव आ चुके हैं लेकिन चुनावी मेंढक बने मेंढक का औरों की तरह मुझे भी उसका और उसके वादे के पूरा होने का इंतजार है। शयद, वह भी परिपक्व चुनावी मेंढक बन चुका है। 

डिस्क्लेमर

यह इस चुनावी दौर में स्वस्थ मनोरंजन के लिए लिखा गया एक काल्पनिक व्यंग्य है। इसमें उल्लेखित प्रक्रिया को चुनाव की वास्तविक प्रक्रिया से जोड़ कर नहीं देखें। यह प्रयास आपको कैसा लगा, इस बारे में वाट्सएप नंबर +91 9826809338 अथवा ई-मेल आईडी neeruababa@gmail.com पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं।