ज़रा याद करो कुर्बानी ! काकोरी ट्रेन कांड के मास्टर माइंड क्रांतिकारी राजेंद्र लाहिड़ी 15 वर्ष की उम्र में ही कूद पड़े थे आजादी के आंदोलन में
आजादी की लड़ाई में अहम् भूमिका निभाने वाले काकोरी ट्रेन कांड के मास्टर माइंड शहीद राजेंद्र लाहिड़ी की आज जयंती है, आइये इतिहासविद् डॉ. प्रदीपसिंह राव के इस आलेख के साथ उन्हें नमन करें।

डॉ. प्रदीपसिंह राव
मात्र 26-27 साल की उम्र में देश के लिए शाहीद हो जाने वाले, 16-17 साल के किशोर, क्रांतिकारियों युवाओं को याद करने के लिए भी देश को फुर्सत नहीं। शायद ही किसी मीडिया ने राजेंद्रनाथ लाहिड़ी की जयंती पर आज उन्हें याद कर कवरेज दिया होगा! देश की पिज्जा-बर्गर पीढ़ी को पता होना चाहिए कि आज जो देश स्वतंत्र है, उसके लिए सैकड़ों युवाओं, किशोरों ने बलिदान दिया है। 29 जून, 1901 को जन्मे राजेंद्रनाथ लाहिड़ी भी इनमें शुमार हैं जो 15-16 वर्ष की उम्र में ही भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खां और रोशन सिंह के साथ हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन क्रांतिकारी दल में शामिल हो गए थे।
भूमिगत रहकर ये क्रांतिकारी अंग्रेजों के नींद उड़ा रहे थे। 9 अगस्त, 1925 को सहारनपुर से लखनऊ जा रही ट्रेन को काकोरी स्टेशन पर इन क्रांतिकारियों ने मास्टर माइंड लाहिड़ी की योजनानुसार रोककर खजाना लूट लिया, जो क्रांति के लिए हथियार खरीदने के उद्देश्य से षड्यंत्र रचा गया था। मन्मनाथ गुप्त, रामप्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह और लाहिड़ी ने प्रत्यक्ष रूप से घटना को अंजाम दिया था। ये बाद में गिरफ्तार कर लिए गए। इन्हें फांसी की सजा सुना दी गई। मन्मनाथ गुप्त को कम उम्र के कारण 14 वर्ष की कैद दी गई, जबकि हमारे झाबुआ भाबरा के क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद मालवा के जंगलों में भूमिगत हो गए। बाद में आजाद अल्फ्रेड पार्क में पुलिस मुठभेड़ में बहादुरी से मुकाबला करते हुए शहीद हो गए।
कानपुर से छपने वाले अखबार ‘प्रताप’ के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी ने इन क्रांतिकारियों की यशोगान के साथ खबर छापी तो उन पर डकैती और हत्या का मुकदमा चलाया गया। इस काकोरी कांड और फंसी की सजा सुनने के बाद पूरे देश में आजादी के संग्राम की आग तेज हो गई जो 1930 से 1947 तक चली और 17 साल में आजादी मिलने के बाद ही शांत हुई। ऐसे क्रांतिकारी राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को आज उनकी जयंती पर हम सब नमन करें। जयहिंद!
(लेखक डॉ. प्रदीपसिंह राव शासकीय महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्राचार्य, इतिहासविद्, साहित्यकार, विदेशी मामलों के जानकार है)