जातीय संतुलन की चिड़िया हुई काफूर, जिस OBC के लिए सुप्रीम कोर्ट तक मचा घमासान उसे MIC में नहीं मिला उचित सम्मान

 महापौर प्रहलाद पटेल द्वारा गठित की गई एमआईसी को लेकर भाजपा में जहां बड़ा धड़ा खुश है वहीं कुछ लोग नाखुश भी हैं। इस नाखुशी की बड़ी वजह ओबीसी को पर्याप्त स्थान नहीं दिया जाना बताया जा रहा है। इसके चलते पार्टी हाईकमान को शिकायत की भी तैयारी है।

जातीय संतुलन की चिड़िया हुई काफूर, जिस OBC के लिए सुप्रीम कोर्ट तक मचा घमासान उसे MIC में नहीं मिला उचित सम्मान
रतलाम की एमआईसी में नहीं दिखा सबका साथ - सबका विकास।

नीरज कुमार शुक्ला

एसीएन टाइम्स @ कैप्शन । पहले टिकट वितरण को लेकर भाजपा पर सवाल उठे थे और अब एमआईसी गठन सवालों के घेरे में है। जिस ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के आरक्षण को लेकर प्रदेश सरकार से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक ऊहापोह की स्थिति मची थी उसी को महापौर परिषद में (MIC) उचित सम्मान नहीं मिल सका। अल्पसंख्यक को प्रतिनिधित्व देने के मामले में पार्टी का सबका साथ – सबका विकास वाला नारा सही साबित नहीं हुआ। पार्टी के कुछ लोग इस मामले में प्रदेश हाईकमान से शिकायत करने की तैयारी कर रहे हैं।

महापौर प्रहलाद पटेल के 10 सदस्यीय मंत्रिमंडल (एमआईसी) का गठन शुक्रवार देर शाम हो गया। कहने के तो यह महापौर का मंत्रिमंडल है लेकिन हकीकत इससे इतर नजर आ रही है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि एमआईसी गठन में सभी पक्षों को साधने और संतुलन बनाने का प्रयास किया गया है लेकिन ऐसा दिख नहीं रहा है। इसका बड़ा उदाहरण ओबीसी फैक्टर है जिसे एमआईसी में पर्याप्त सम्मान नहीं मिला है।

सुप्रीम कोर्ट से 27 फीसदी आरक्षण ओबीसी को देने के दिशा-निर्देश जारी हुए थे। तब पार्टी ने इससे ज्यादा टिकट इस वर्ग को देने की बात कही थी। पार्टी दावा कर रही है कि महापौर ओबीसी से बनाया जबकि सच्चाई यह है कि इसमें पार्टी का खुद का कोई निर्णय नहीं था बल्कि यह आरक्षण के रोस्टर और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के परिपालन में हुई एक प्रक्रिया के तहत हुआ है। अतः भाजपा द्वारा इसका श्रेय लेना समझ से परे है। एक जानकारी के अनुसार शहर में 1 लाख से ज्यादा मतदाता ओबीसी के जो 49 वार्डों में रहते हैं। अगर 30 फीसदी सीटें भी इस इस वर्ग की मानें तो 15 वार्ड ओबीसी के होते हैं।

मिलने थे तीन पद, मिला एक

जिस वर्ग के लिए पार्टी इतनी उदार थी उसी को एमआईसी में प्रतिनिधित्व देते समय जिम्मेदारों की सोच संकुचित हो गई। आरक्षण की शर्त और पार्षदों के टिकट वितरण की ही तरह एमआईसी में भी संतुलन बनाया गया होता तो 10 सदस्यीय एमआईसी में से 3 पद ओबीसी के होते। जबकि सिर्फ एक ही पद (वार्ड क्रमांक 18 के पार्षद मनोहरलाल सोनी उर्फ राजू सोनी) इस वर्ग के हिस्से आया। वहीं सबसे ज्यादा फायदे में ब्राह्मण वर्ग रहा जिसके हिस्से 40 फीसदी (यानी चार पार्षद गिरधारी सिंह पुरोहित, विशाल शर्मा, धर्मेंद्र व्यास और सपना त्रिपाठी) पद आए। यहाँ तक कि निगम अध्यक्ष का पद भी इसी वर्ग को मिला। पूर्व एमआईसी सदस्य भगतसिंह भदौरिया, अक्षय संघवी तथा दिलीप गांधी को भी इसमें जोड़ लें तो 10 में से 7 पद तो सामान्य श्रेणी को दे दिए गए हैं।

अल्पसंख्यक किस चिड़िया का नाम है

एमआईसी के स्वरूप को देखें तो कोई भी यह सवाल पूछ सकता है कि इसमें अल्पसंख्यक नाम की चिड़िया कहां है। दरअसल अल्पसंख्यक को प्रतिनिधित्व देने के मामले में भी पार्टी कंजूस ही नजर आई। अव्वल तो पार्टी के टिकट पर लड़ने वाले सबसे बड़े अल्पसंख्यक वर्ग मुस्लिम समुदाय के प्रत्याशी जीत नहीं पाए। जोड़-तोड़ कर के एक कांग्रेसी को भाजपा की सदस्यता दिलाई गई। राजयोग प्रबल थे जो वह निर्विरोध जीत भी गया। माना जा रहा था कि इस अल्पसंख्यक समुदाय के एकमात्र पार्षद को एमआईसी में प्रतिनिधित्व देकर महापौर सभी को चौंका सकते हैं लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

जिला अध्यक्ष की नहीं चली एमआईसी में

राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि एमआईसी गठन में सभी धड़ों को साधने का प्रयास हुआ सिवाय जिला अध्यक्ष को छोड़कर। सूची देखने से भी प्रथमदृष्ट्या यही प्रतीत हो रहा है कि भाजपा जिला अध्यक्ष की लगभग उपेक्षा ही हुई है। माना जा रहा है कि यदि जिला अध्यक्ष की चलती तो ओबीसी के योगेश पापटवाल को प्रतिनिधित्व मिल सकता था। ऐसा इसलिए पापटवाल के परिवार के सदस्य एच.एल. पापटवाल अध्यक्ष के काफी नजदीकी हैं और फिर खुद योगेश पूर्व एमआईसी सदस्य सुरेश पापटवाल के भतीजे हैं और भाजयुमो से भी जुड़े हैं। योगेश की भाजयुमो जिला अध्यक्ष से नजदीकता भी बाधा बताई जा रही है। इसी तरह अध्यक्ष के नजदीकी परमानंद योगी और शक्तिसिंह भी जगह नहीं बना सके।

अनुशंसित सूची लीक होने पर उठ रहे सवाल

सूत्रों की मानें तो भाजपा के कुछ लोग एमआईसी के लिए जिला अध्यक्ष द्वारा अनुशंसित सूची सोशल मीडिया में लीक होने को भी अनुचित बता रहे हैं। उनका कहना है कि एमआईसी का गठन बेशक, सत्ता, संगठन के लोग और महापौर बैठकर समन्वय स्थापित कर के करते हैं लेकिन नामों की घोषणा महापौर ही करते हैं। बाकी जो भी प्रक्रिया है वह गोपनीय होती है। बावजूद इस बार जिला अध्यक्ष द्वारा अनुशंसित सूची गठन होने से पहले ही सोशल मीडिया पर आ गई थी।

किसे, क्यों मिला एमआईसी में स्थान

भगतसिंह भदौरिया : पूर्व पार्षद और एमआईसी सदस्य होने का अनुभव। शहर विधायक की पसंद। निगम अध्यक्ष पद पर प्रबल दावेदारी होने के बाद भी वंचित रखने की नाराजगी दूर करना।

गिरधारीसिंह (पप्पू पुरोहित) : पूर्व जिला अध्यक्ष व वरिष्ठ भाजपा नेता बजरंग पुरोहित से संबंध। पूर्व अध्यक्ष पुरोहित के प्रदेश स्तर पर संबंध। ब्राह्मण समाज को साधना। पटरी पार इलाके में पार्टी को मजबूत करना।

अनीता कटारा : जातिगत समीकरण। हालांकि एक अन्य सदस्य भी इस वर्ग से हैं लेकिन कटारा को पूर्व परिषद का अनुभव है। माइक पर बोल सकने में सक्षम।

मनोहरलाल सोनी (राजू सोनी) : शहर विधायक की पसंद हैं। प्रवीण सोनी का महापौर का टिकट कटने से समाज को साधने की एक कोशिश।

विशाल शर्मा : कल्याण गुरु से जुड़ाव व खुद का अपना वजूद। प्रदेश स्तर निगम अध्यक्ष बनाने को लेकर दबाव था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ब्राह्मण समाज को साधना। पूर्व धर्मस्व मंत्री मोतीलाल दवे के बेटे व पूर्व पार्षद संजय दवे जैसे व्यक्ति को हराना।

अक्षय संघवी : भाजपा नेता अशोक जैन लाला से जुड़ाव। जैन का विधायक काश्यप से जुड़ाव।

धर्मेन्द्र व्यास : सिंधिया खेमे के भाजपा प्रदेश कार्य समिति सदस्य निमिष व्यास से जुड़ाव जुड़ाव। पूर्व गृह मंत्री हिम्मत कोठारी की सहमति। फिर इन्हें लेकर ब्राह्मण समाज को ज्यादा प्रतिनिधित्व देने का संदेश भी भाजपा ने देने का प्रयास किया है।

दिलीप गांधी : जैन समाज को प्रतिनिधित्व देना। पूर्व गृह मंत्री हिम्मत कोठारी और विधायक चेतन्य काश्यप की पसंद। लंबा राजनीतिक अनुभव।

रामलाल डाबी : विधायक चेतन्य काश्यप की पसंद। जातिगत समीकरण।

सपना त्रिपाठी : पूर्व गृह मंत्री हिम्मत कोठारी की पसंद। पूर्व निगम अध्यक्ष और आरडीए अध्यक्ष विष्णु त्रिपाठी के प्रति संवेदना जाहिर करना। इस बार के चुनाव में यह भी माना जा रहा था कि सिखवाल ब्राह्मण समाज का समर्थन महापौर प्रत्याशी मयंक जाट को मिल सकता है। इस भ्रम या कयास को खत्म करने के लिए भी त्रिपाठी परिवार को एमआईसी में जगह देना एक वजह हो सकती है।