नगर सरकार का परिणाम यानी विधानसभा चुनाव 2023 के लिए खतरे का ‘अलार्म’, वोटों के गणित से जाने किसकी होगी ‘अग्निपरीक्षा’

रतलाम में हुए नगर सरकार के चुनाव के आंकड़ों को लेकर रोज अलग-अलग विश्लेषण हो रहे हैं। वोटों के गणित के आधार पर 2023 के विधानसभा चुनाव की संभावित तस्वीर देखने के लिए पढ़ें पूरा आलेख।

नगर सरकार का परिणाम यानी विधानसभा चुनाव 2023 के लिए खतरे का ‘अलार्म’, वोटों के गणित से जाने किसकी होगी ‘अग्निपरीक्षा’
नीर का तीर

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । शायर इरफ़ान सिद्दीक़ी ने लिखा है कि- उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए, कि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए। यानी इस उजली रात का जो नजारा है वह देखने के लिए जागने की जरूरत है। भविष्य की रातें भी उजली होंगी, यह जरूरी नहीं है, क्योंकि इस उजली रात के आगोश में कुछ काले पक्ष भी छिपे हैं। रतलाम की नगर सरकार के परिणाम भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं। हार-जीत के आंकड़ों पर गौर करें तो ये 2023 के विधानसभा चुनाव में जीत के ख्वाब देख रहे सत्ताधारी दल भाजपा के लिए अप्रत्याशित खतरे का अलार्म ही प्रतीत हो रहे हैं। यह अलार्म ही शायर महशर बदायूंनी की लिखी इस बात  बात साबित करेगा कि- अब हवाएँ ही करेंगी रौशनी का फ़ैसला, जिस दिए में जान होगी वो दिया रह जाएगा।

नगर सरकार चुनने के लिए पिछले दिनों हुए चुनाव में महापौर पद के लिए कुल 1,47,932 वोट डले। इनमें से 3498 वोट निर्दलीय चुनाव लड़े मुस्लिम प्रत्याशियों के हिस्से आए जबकि भाजपा के निर्दलीयों को मिले 551 वोट। वहीं कांग्रेस को 67,646 और भाजपा को 76,237 वोट मिले जिससे भाजपा की 8,591 के अंतर से जीत गई।

कहने वाले कह रहे हैं कि जीत तो जीत होती है फिर चाहे वह एक वोट से ही क्यों न हो। दिल बहलाने को गालिब ये ख्याल अच्छा है लेकिन जिस राजनीतिक दल की सत्ता केंद्र से लेकर नगर सरकार तक रही हो, उसके लिए नगरीय निकाय चुनाव में मिली जीत का आंकड़ा संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। यह आंकड़ा उस हालात में तो कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता जब कांग्रेस के प्रतिकूल माहौल होने के बाद भी उसके प्रत्याशी को पूरी सरकार और संगठन को सड़क पर उतरना पड़ा हो।

अब यदि विधानसभा की दृष्टि से वोटों का आंकलन करें और यदि वार्ड वार मुस्लिम समुदाय के वोटों को कांग्रेस को अभी मिले वोटों और निर्दलीय के भाजपा को मिले वोटों में जोड़ें तो दोनों दलों के वोटों की संख्या क्रमश: 71,144 और 76,788 हो जाती है। इसमें महज 5644 का ही अंतर बचता है। अगर आगे भी यही ट्रेंड बना रहा और भाजपा नगरीय निकाय चुनाव में कम हुई लीड के कारणों की समीक्षा कर उनका समाधान नहीं करती है तो भाजपा का एकतरफा जीत का सपना विधानसभा चुनाव में ‘सपना’ ही न रह जाए।

यह 23.13 फीसदी बदल सकता था परिणाम

आइये, अब जरा वार्ड में पार्षद प्रत्याशियों को मिले वोटों की भी बात करते चलें। यदि महापौर को मिले वोट व निर्दलीयों को मिले वोटों से तुलना करें तो स्थिति और गंभीर है। सभी भाजपा पार्षद प्रत्याशियों को कुल 69,344 वोट मिले। वहीं कांग्रेस के पार्षद प्रत्याशियों को कुल 51,993 वोट मिले। आंकड़ों से साफ है कि कांग्रेस के विद्रोहियों के वोट महापौर पद पर कांग्रेस प्रत्याशी को ही मिले जिसका अंतर 15 हजार 653 (महापौर प्रत्याशी के वोट 67646 से कांग्रेस पार्षद प्रत्याशी के वोट 51993 घटाने पर) होता है। अर्थात कांग्रेस के टिकट वितरण से नाराज पार्षद कुल 23.14 % वोटों की ताकत रखते थे। यदि कांग्रेस ने पार्षद प्रत्याशियों का चयन सही किया होता तो कांग्रेस के प्रचार और वोट की ताकत में 23.13 फीसदी का इजाफा और हो गया होता। तब परिणाम कुछ भी हो सकता था।

कितने दिन रहेगा पार्टी के अनुशासन के चाबुक का असर

इसी प्रकार भाजपा के सभी पार्षद प्रत्याशियों की बात करें तो उन्हें कुल 69,344 वोट मिले। जो माहपौर प्रत्याशी को मिले वोट 76,237 से 6893 कम हैं। प्रतिशत में 9.04 होता है। यह नुकसान कम नहीं है। अगर भाजपा आगामी दिनों में यह आक्रोश थाम ले तो विधानसभा चुनाव में ये 9.04 फीसदी वोट भी भाजपा के हिस्से आ सकते हैं। कांग्रेस की ही तरह टिकट वितरण का आक्रोश भाजपा में कम नहीं था लेकिन संगठन द्वारा चलाए अनुशासन के चाबुक और भविष्य की चिंता के कारण अधिकतर समय रहते काबू कर लिए गए। अगर भाजपा के इन नाराज वार्ड प्रत्याशियों ने अपने गुस्से को भुनाते हुए गलती से भी महापौर प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस के मयंक जाट का नाम चला दिया होता या मेहनत हो गई होती तो भी परिणाम कुछ और हो सकते थे।

खोने के लिए कुछ नहीं, पाने के लिए कुछ भी संभव है

भाजपा के पास अपने असंतुष्टों को साधने का पहला अवसर नगर सरकार की शपथ के बाद एमआईसी गठन का ही आएगा। यदि पार्टी अपनी विचारधारा के अनुरूप जीते पार्षदों को एमआईसी में लेती है और एल्डरमैन जैसे पदों से नवाजती है तो भविष्य को देखते हुए कुछ पॉजिटिव हो सकता है। भाजपा भले ही ऐसा न करे लेकिन कांग्रेस उन्हें आकर्षित करने का प्रयास तो करेगी ही। वैसे भी जो असंतुष्ट चुनाव जीते हैं उन्हें पहले ही भाजपा बाहर कर चुकी है जिससे अब उसके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है।

...तो विधायक काश्यप की होगी अग्नि परीक्षा

एक बात और गौर करने वाली यह है कि पार्षद पद के जिन दावेदारों को इस चुनाव में टिकट नहीं मिला अथवा जिन्हें पार्टी से बाहर होने के दबाव में नाम वापस लेना पड़ा, उनका व्यवहार विधानसभा में कितना सहयोगात्मक रहेगा, यह कह नहीं सकते। इसमें कोई दो राय नहीं कि विधानसभा चुनाव में शहर विधायक काश्यप चेतन्य काश्यप की व्यक्तिगत इमेज ही ज्यादा महत्वपूर्ण रहेगी परन्तु यह भी सही है कि दो कार्यकाल के बाद की एंटी इन्कम्बेंसी और भाजपा के 50 वर्ष से पुराने कार्यकर्ताओं के ठंडे रुख को नजरअंदाज करना नादानी ही साबित होगी। निकाय चुनाव में कार्यकर्ताओं के विरोध की आग प्रदर्शन के रूप में विसाजी मेंशन तक पहुंच ही चुकी है। पिछले चुनाव के पूर्व तक कभी भी ऐसी कोई स्थिति नहीं थी। यानी काश्यप के लिए कार्यकर्ताओं को साधना किसी ‘अग्नि परीक्षा’ से कम नहीं होगा। वैसे ताकत तो इस चुनाव में भी विधायक काश्यप सहित पूरी भाजपा लगा चुकी है जिसका परिणाम सबके सामने है।

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डिस्क्लेमर

इस विश्लेषण में आंकड़ों का पूरी तरह ध्यान रखा गया है फिर बी मानवीय त्रुटि किसी से भी संभाव्य है। यदि किसी को ऐसी कोई त्रुटि नजर आए तो वाट्सएप नंबर 9826809338 पर अवश्य अवगत कराएं। आपका सहयोग ही एसीएन टाइम्स परिवार का संबल है।