विजयवर्गीय का रुतबा होगा शेडो सीएम जैसा, बाकी बौने

मध्य प्रदेश की मोहन मंडली (मोहन सरकार) में इंदौर विधायक कैलाश विजयवर्गीय का कद क्या रहने वाला है, यह बता रहे हैं देश के बड़े पत्रकार कीर्ति राणा। आइये, हम भी जानते है विजयवर्गीय का भविष्य।

विजयवर्गीय का रुतबा होगा शेडो सीएम जैसा, बाकी बौने
विजयवर्गीय का रुतबाशेडो सीएम जैसा !

कीर्ति राणा

केंद्र में भाजपा और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होती तो महामहिम भी बारह दिनों का मौन धारण नहीं कर पाते ! चूंकि अब राजस्थान और छत्तीसगढ़ की तरह मप्र भी केंद्र शासित प्रदेश हो गया है, इसलिए मुख्यमंत्री मोहन यादव ने दिल्ली से इशारा मिलते ही अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के नाम राज्यपाल को सौंप दिए। इस दौरान जिन संभावित मंत्रियों के नाम मीडिया गिनाता रहा, वो सारे अनुमान चुनाव परिणाम की तरह फिर फेल साबित हो गए हैं।

किसने सोचा था कि देश में इंदौर का नाम चमकाने वाली मालिनी गौड़, संघ कोटे वाली उषा ठाकुर के साथ महेंद्र हार्डिया के सूची में नाम नहीं होंगे! चार-पांच बार से जीतते आ रहे इन विधायकों पर कैलाश विजयवर्गीय इतने भारी पड़ गए कि अब इनके समर्थकों को भी समझ आ रहा होगा कि उन्होंने मीडिया से क्यों कहा था- मुझे आप लोग ही हल्के में लेते हो। भारी--भरकम मंत्रालय मिले ना मिले... इंदौर जिले में चलेगी तो उनकी ही। विजयवर्गीय के मंत्री बन जाने से विधायक मेंदोला के समर्थकों की उम्मीद पर भी पाला पड़ गया है।

प्रदेश में सर्वाधिक मतों से दूसरी बार कीर्तिमान बनाने वाले मेंदोला के मायूस समर्थक मन को समझाने के लिए कह सकते हैं कि कैलाशजी के बनने का मतलब है एक तरह से दादा दयालु बन गए! ऐसा तो गोलू शुक्ला भी सोच सकते हैं, लेकिन लालबत्ती का सपना देखने वाले प्रदेश के कई भारी-भरकम विधायकों के साथ भी तो चोट हो गई... फिर चाहे वो गोपाल भार्गव हों, भूपेंद्र सिंह हों या सिंधिया समर्थक अन्य विधायक। शिवराज के समय जो भरोसेमंद मंत्री रहे, उन्हें भी मायूसी हाथ लगी है। ज्यादातर इनके समर्थक बस इस कारण खुश हो सकते हैं कि सिंहस्थ प्रभारी और लोनिवि मंत्री रहे जिन विजयवर्गीय के सामने 2004 में कभी मोहन यादव झुके-झुके से रहते थे... अब वही यादव केंद्रीय मंत्री-सांसद से पहली बार मंत्री बने उनके लीडर के रूप में मोशाजी से मार्गदर्शन लेते नजर आ रहे हैं। जिस तरह शिवराज मंत्रिमंडल में पूर्व सीएम बाबूलाल गौर सहयोगी रहे, लगभग वही स्थिति कद्दावर नेताओं की इस मंत्रिमंडल में भी हो गई है।

इंदौर के कार्यकर्ताओं को कौन समझाए कि विजयवर्गीय तो दादा दयालु के लिए त्याग को आतुर थे, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व भी जानता था कि लोकसभा चुनाव में आसपास की सीटों पर प्रभाव और स्थानीय विधायकों को नियंत्रण में रखने के लिए विजयवर्गीय का बरगद-सा फैलाव जरूरी है! मालवा-निमाड़ की 66 सीटों में से बीजेपी ने इस बार 47 सीट जीती हैं तो उसका श्रेय उनके खाते में दर्ज है। इस क्षेत्र को सीएम, एक डिप्टी सीएम के साथ कुल सात मंत्री मिले हैं। कांग्रेस के वक्त महेश जोशी शेडो सीएम माने जाते थे, अब विजयवर्गीय का भी वैसा ही रुतबा रहना है। सिलावट भी मंत्री बने हैं तो ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से वर्ना तो पूरे इंदौर जिले से एकमात्र विजयवर्गीय ही रहते। बहुत संभव है कि इंदौर और आसपास की लोकसभा सीटें जीतने के लिए उन्हें फिलहाल मंत्री बनाया गया हो। वैसे भी प्रदेश मंत्रिमंडल का विस्तार लोकसभा चुनाव बाद किया जाना है, तब शायद मेंदोला पर कृपा बरस जाए! कम-से-कम मेंदोला को यह संतोष तो कर ही लेना चाहिए कि ओबीसी विधायकों को खुश करने में सिर्फ उनकी ही अनदेखी नहीं हुई है... सिंधी, सिख और महाराष्ट्रीयन समाज को भी बारह दिनी मंथन के बाद भी प्रतिनिधित्व नहीं मिला है।

तय किए गए मंत्रियों के नाम में पहली बार जीते डॉ. राजेश सोनकर, मधु वर्मा को भले ही मौका नहीं मिला हो, लेकिन नरसिंहपुर सीट से विधायक-सीएम पद के दावेदार प्रह्लादसिंह पटेल, मंडला से पहली बार विधायक बनीं (पूर्व राज्यसभा सदस्य) संपतिया उईके, जबलपुर से विधायक राकेश सिंह (पूर्व सांसद, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष), उदयपुरा सीट से जीते नरेंद्र शिवाजी पटेल, रैगांव की विधायक प्रतिमा बागरी, चितरंगी से विधायक राधा सिंह और चंदला सीट से जीते विधायक दिलीप अहिरवार खुशकिस्मत हैं कि पहली बार जीते और मंत्री पद भी मिल गया।

शिवराज सिंह की सरकार वाले 18 सालों में यदि बाकी मंत्री सिर्फ नाम के ही थे तो 3 दिसंबर की शाम से हुए केंद्र शासित इस प्रदेश में जितनी चाबी भरी राम ने उतना चले खिलौना... जैसे दृश्य दिख ही रहे हैं। अब इस मोहन मंडली की कार की रफ्तार भी दिल्ली सरकार तय करती रहेगी। न्यूज चैनलों को जिस तरह सुबह ही एजेंडा बता दिया जाता है, वैसे ही मोदी की गारंटी से प्रदेश की खुशहाली कैसे होगी... इसका होमवर्क केंद्रीय नेतृत्व से मिलता रहेगा और हर तीन महीने में होने वाले टेस्ट के आधार पर मंत्रियों का मूल्यांकन होगा। लगता नहीं कि तीनों राज्यों में मुख्यमंत्रियों को बीच में बदलने का कड़ा फैसला लेना पड़े, लेकिन चुनाव परिणाम बाद मोशाजी यदि शिवराज की उम्मीदों पर पानी फेर सकते हैं तो रिमोट के सेल बदलने में भी देरी नहीं करेंगे।

सात सांसदों, तीन केंद्रीय मंत्रियों को विधानसभा में उतारकर इन सबके कद तो पहले ही छोटे कर दिए थे, भविष्य में इन सभी के क्षेत्रों में नए चेहरों को लोकसभा लड़ाने का निर्णय लिया जा सकता है या मंत्री बनाए गए कुछ विधायकों को फिर से लोकसभा लड़वा सकते हैं! तीनों राज्यों में मंत्रिमंडल गठन के बाद अब भाजपा में भी बदलाव तय है। शिवराज को दक्षिण का दायित्व सौंपकर उन्हें भी उमा भारती की तरह प्रदेश निकाला देने वाला केंद्रीय नेतृत्व विजयवर्गीय को भी अब ज्यादा दिन राष्ट्रीय महासचिव इसलिए भी नहीं रहने देगा, क्योंकि उनकी अधिक जरूरत अब प्रदेश में है। उनके समर्थकों को उम्मीद है कि नरोत्तम मिश्रा वाला विभाग मिल रहा है, ऐसा हो जाए तो उनके लिए भी तलवार की धार पर चलने जैसी चुनौती रहेगी। यह महकमा मिले या कोई दूसरा, उन्हें  दो नंबर, तीन नंबर या एक नंबर के छंटे-छटाए लोगों को नियंत्रण में रखना होगा, नहीं तो उनके काम और पूर्व गृहमंत्री के नाम में क्या फर्क रह जाएगा। महापौर, सांसद के साथ ही अब बाकी सभी विधायकों, जमीन के जादूगरों से लेकर व्यापार करने वालों के साथ ही अधिकारियों की भी अनिवार्यता रहेगी... उनसे बेहतर तालमेल बनाए रखना। प्रधानमंत्री के विजन मुताबिक हर क्षेत्र में इंदौर को देश का नंबर वन शहर बनाने का दायित्व भी तो उन पर ही रहेगा।

(विश्लेषक 'कीर्ति राणा' देश के वरिष्ठ पत्रकार और सांध्य दैनिक 'हिंदुस्तान मेल' के समूह संपादक हैं)