समीक्षा लेख : स्वाधीनता संग्राम के गुमनाम क़िरदारों को सामने लाने और समझ के नए द्वार खोलने का जतन 'भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की भूमिका'

राजनीति शास्त्र की अध्येता एवं शिक्षाविद डॉ. मंगलेश्वरी जोशी की पुस्तक 'भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की भूमिका' समझ के नए द्वार खोलती है। यह स्वाधीनता संग्राम के गुमनाम किरदारों को सामने लाने का एक जतन भी है। इस बारे में विस्तार से प्रकाश डाल रहे हैं युवा साहित्यकार आशीष दशोत्तर।

समीक्षा लेख : स्वाधीनता संग्राम के गुमनाम क़िरदारों को सामने लाने और समझ के नए द्वार खोलने का जतन 'भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की भूमिका'

आशीष दशोत्तर

  भारत देश इस वक्त अपनी स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है। हमारे देश को आज़ादी मिले 75 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। एक देश के लिए और उसके स्वतंत्र अस्तित्व के लिए यह गौरव की बात है। किसी भी देश की अस्मिता और अस्तित्व उसकी स्वतंत्रता के साथ ही जुड़ा होता है। परतंत्र देश की अपनी सीमाएं होती हैं, विसंगतियां होती हैं और मजबूरियां भी। 

  परतंत्र भारत और स्वतंत्र भारत के अंतर को वही समझ सकता है जिसने इन दोनों परिस्थितियों में सांस ली हो। आज की पीढ़ी, जो परतंत्रता की पीड़ा से अनजान है, उनके सामने उन तथ्यों, विचारों, प्रसंगों को सामने लाना आवश्यक है, जिनके माध्यम से वे यह जान सके कि भारत देश को आज़ादी कितने लंबे संघर्ष के बाद प्राप्त हुई। नई पीढ़ी जब तक अपने अतीत से परिचित नहीं होगी, न तो उसे वर्तमान का आभास हो सकेगा और न ही वह अपने भविष्य को गढ़ सकेगी।

   इस लिहाज से राजनीति शास्त्र की अध्येता एवं शिक्षाविद डॉ. मंगलेश्वरी जोशी की पुस्तक 'भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की भूमिका' समझ के नए द्वार खोलती है। डॉ. जोशी द्वारा किए गए शोध कार्य को इस पुस्तक में समाहित किया गया है, मगर यह सिर्फ शोध कार्य नहीं, यह इतिहास बोध का भी कार्य है। मुख्य रूप से पूर्व निमाड़ क्षेत्र में 1857 के स्वाधीनता संघर्ष के उपरांत उपजी परिस्थितियों का आंकलन करने के उद्देश्य से डॉ. जोशी ने इस कार्य को करने का निश्चय किया। 

  अपने इस उद्देश्य को निरूपित करते हुए वे स्वयं कहती हैं कि 'हमारे देश के स्वाधीनता संग्राम में अनेक महान नेताओं ने योगदान दिया है। इन महान नेताओं के नेतृत्व को सफल बनाने में अनेक आंदोलनकारी हुए, जिन्होंने उसे दृढ़ता प्रदान करने में प्रमुख भूमिका निभाई। ऐसे मूक एवं कर्मठ व्यक्तियों में भारत को आज़ादी प्रदान कराने में अपने त्याग व देश प्रेम द्वारा इस महान कार्य को पूर्णता दी है, जिसे भुलाया नहीं जा सकता। पूर्व निमाड़ जिले को राष्ट्रीय परिदृश्य से अलग नहीं किया जा सकता। पूर्व निमाड़ जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का योगदान अनिवार्य ही नहीं अपितु चिंतन के लिए आवश्यक भी है। पूर्व निमाड़ जिले के स्वतंत्रता सेनानियों का भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में क्या योगदान है, ऐसे सेनानी जो प्रकाश में नहीं आए और उनके महत्वपूर्ण योगदान द्वारा हमारा देश स्वतंत्र हुआ, ऐसे व्यक्तियों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। इससे हम वंचित न रह जाएं इस उद्देश्य को लेकर यह पुस्तक रची गई है।'

  जाहिरी तौर पर इस पुस्तक के पीछे जो उद्देश्य नज़र आता है, वह अपने उन सेनानियों को याद करने का है जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण तो न्यौछावर कर दिए मगर वे अनसुने और अनजाने ही रह गए। जब हम किसी देश की स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्ष के परिदृश्य को अपने विचार में लाते हैं तो यक़ीनन उस देश के हर उस तबके को हम अपने सामने पाते हैं जो अपने अपने स्तर पर स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष करता है। हिंदुस्तान जैसे विविधवर्णी संस्कृति वाले देश में स्वतंत्रता आंदोलन किसी एक वर्ग, किसी एक समाज, किसी एक धर्म, किसी एक विचारधारा या किसी एक उद्देश्य के पीछे सीमित नहीं रहा । देश की स्वतंत्रता में सभी का बराबर और पूर्ण सहयोग रहा । इस पुस्तक में जिन क़िरदारों का उल्लेख किया गया है वे निश्चित रूप से पूर्व निमाड़ क्षेत्र के ऐसे महत्वपूर्ण व्यक्ति रहे जिन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। डॉ. मंगलेश्वरी जोशी ने उन क़िरदारों पर रोशनी डाल कर उन्हें जीवंत करने का कार्य किया है। 

  अपने इतिहास के प्रति लगाव ही इस तरह की अभिव्यक्ति को जन्म देता है। यह पुस्तक मुख्य रूप से सात अध्याय में वर्गीकृत की गई है। पहला भाग 'स्वाधीनता आंदोलन से पूर्व निमाड़ की स्थिति' पर केंद्रित है, जिसमें पूर्व निमाड़ का वैविध्य है। वहां की भौगोलिक एवं राजनीतिक स्थिति, वहां के प्रमुख प्राकृतिक- धार्मिक स्थल, निमाड़ के नामकरण के पीछे मौजूद पौराणिक एवं ऐतिहासिक संदर्भ, वहां का धार्मिक एवं सामाजिक स्वरूप, राजनीतिक स्थिति, प्रमुख व्यक्तित्व, क्षेत्र में निवास करने वाली जातियां, लोक संस्कृति एवं लोक पर्वों का विस्तार से वर्णन किया गया है।

  दूसरा भाग 'अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति से अट्ठारह सौ पचासी तक पूर्व निमाड़ में राष्ट्रीय आंदोलन' पर केंद्रित है। इस महत्वपूर्ण खंड में 1857 के विद्रोह के पूर्व निमाड़ पर पड़े प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया गया है। ख़ासतौर से तात्या टोपे की पूर्व निमाड़ क्षेत्र में गतिविधियां, उनकी मौजूदगी और उनका प्रभाव कई सारे नए संदर्भों को सामने रखता है। इस दौरान क्षेत्र की रियासतों के स्वरूप और उनकी आज़ादी के आंदोलन में भूमिका पर भी प्रकाश डाला गया है। इसी भाग में ख़िलाफत तेहरीक़, खालसा तेहरीक़, जमीअत-उल्म-ए -हिंद, मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा, आर्य समाज, आर्य कुमार सभा के साथ ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एवं समाजवादी दल के इस क्षेत्र में पड़े प्रभाव को रेखांकित किया गया है।

  पुस्तक का तीसरा अध्याय 'भारतीय राजनीति में उग्रवादी युग तथा पूर्व निर्माण' पर केंद्रित है। इस भाग में राष्ट्रीय आंदोलन के साथ ही इस क्षेत्र में सक्रिय रहे क्रांतिकारी नगेंद्र मोहन चक्रवर्ती, देवीदयाल जानकी प्रसाद मिश्र, श्याम राव दयाराम लश्करे, हीरालाल सोनी, विनय कुमार पाराशर, बंशीलाल पीरचंद चौधरी जैसे क्रांतिकारियों के साथ बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, बटुकेश्वर दत्त, कमलनाथ तिवारी, विजय कुमार सिन्हा के पूर्व निमाड़ क्षेत्र में पड़े प्रभाव पर विस्तार से चर्चा की गई है।

  भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गांधीवादी युग की चर्चा के बगैर कुछ नहीं कहा जा सकता। महात्मा गांधी का क़िरदार भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ऐसा रहा जिसने न सिर्फ देशवासियों को एकत्र किया बल्कि आज़ादी के लिए आंदोलन कर रहे तमाम लोगों को एकजुटता में बांधा। पुस्तक का चौथा अध्याय 'गांधीवादी युग और पूर्व निमाड़' पर ही आधारित है। इसमें असहयोग आंदोलन, चरखा एवं खादी प्रचार, शराब की दुकानों पर पिकेटिंग, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, विदेशी वस्त्रों की होली जलाना, राष्ट्रीय स्कूलों की स्थापना, झंडा सत्याग्रह, ख़िलाफत आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन का इस क्षेत्र में जो प्रभाव पड़ा उस पर विस्तार से चर्चा की गई है।

  राष्ट्रकवि पंडित माखनलाल चतुर्वेदी यहीं पर थे। उन्होंने न सिर्फ अपनी रचनाधर्मिता के ज़रिए बल्कि इस आंदोलन में सक्रिय सहभागिता कर स्वतंत्रता आंदोलन को मज़बूत किया। पुस्तक में उनका ज़िक्र करते हुए कहा गया है कि 'पूर्व निमाड़ में असहयोग आंदोलन के समय जो राष्ट्रीय चेतना जागृत हुई, वह निरंतर व्यापक होती चली गई। विशेष रूप से माखनलाल चतुर्वेदी के निमाड़ जिला कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने के बाद यहां आंदोलन में विशेष रुप से सक्रियता आई। विद्यार्थियों ने 1923 में प्रांतीय विद्यार्थी परिषद के द्वारा सफलतापूर्वक कार्य किए। 11 अप्रैल 1930 को खंडवा गांधी चौक में माखनलाल चतुर्वेदी की अध्यक्षता में एक विशाल सभा हुई, जिसमें अध्यक्ष महोदय ने सत्याग्रह की प्रतिज्ञा पढ़ी और 30 वीरों ने उसे दोहराया। पंडित माखनलाल चतुर्वेदी को 29 अप्रैल 1930 को जबलपुर में गिरफ्तार किया गया और इन्हें 2 वर्ष का सश्रम कारावास दिया गया। 'इसके साथ ही इस खंड में हरदयाल सिंह चौहान, सिद्धनाथ आगरकर, पंडित बाबूलाल तिवारी, रायचंद नागड़ा, रंजीत प्रसाद तिवारी, जाधव मारू, डॉ. जगन्नाथ महोदय, वीरेंद्र कुमार उपाध्याय, नंदकिशोर शुक्ल, अमोलकचंद जैन के योगदान को भी शिद्दत से याद किया गया है। यह और ऐसे ही संदर्भ इस खंड को राष्ट्रीय आंदोलन से सीधा जोड़ते हैं।

  भारत छोड़ो आंदोलन का इस क्षेत्र में प्रभाव और उस दौरान जिन सेनानियों ने अपनी सक्रिय सहभागिता से इस आंदोलन को पूर्व निमाड़ क्षेत्र में गति प्रदान की उनका स्मरण भी इस खंड में किया गया है। पूर्व निमाड़ के गांधीवादी जाधव मारू, रायचंद नागड़ा, देवीलाल खन्ना, अमोलक चंद जैन, रामकृष्ण पालीवाल, ताराचंद कर्बे के कार्य का यहां बहुत विस्तार से और तमाम संदर्भों के साथ ज़िक्र किया गया है। कर्बेजी का ज़िक्र करते हुए उनके जन जागरण गीतों का भी उल्लेख किया गया है। एक जगह लेखिका यह उल्लेख करती हैं कि 'कर्बेजी अपनी कविताओं में राष्ट्रीय भाव जगाते थे।'

देश के प्रहरी सजग हो, नींद में क्यों सो रहा 

देख आंखें खोल, तेरे देश को क्या हो रहा।

हाथ तो कट ही चुके हैं और न कट जाए अंग 

डंस न ले तेरी दुखी माता को ये काले भुजंग।

  कर्बेजी ने 1925 से 1986 तक साहित्य सृजन करते हुए बाईस खंड काव्यों की रचना के साथ राष्ट्रभक्ति पूर्ण सैकड़ों गीत, कविताओं का सृजन किया। यह जानकारी अपने आप में महत्वपूर्ण और प्रभावित करने वाली है। लेखिका ने ऐसे ही अनेक क़िरदारों पर विस्तार से रोशनी डालकर उन्हें प्रकाश में लाने का महत्वपूर्ण कार्य किया है।

  अध्याय पांच पूर्व निमाड़ के प्रमुख आंदोलनकारी और उनकी रीति-नीति पर केंद्रित है। इसमें पंडित माखनलाल चतुर्वेदी, ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान, सिद्धनाथ माधव आगरकर, मार्तंड राव मजूमदार, पद्म विभूषण पंडित भगवंतराव मंडलोई, फकीरचंद नानकराम कपूर जैसे महत्वपूर्ण व्यक्तित्व के जीवन वृत्त एवं इस क्षेत्र के लिए उनके द्वारा किए गए विशेष कार्यों को रेखांकित किया गया है। इसके पश्चात अध्याय छह कांग्रेस के विभिन्न अधिवेशन से लगाकर भारत विभाजन तक केंद्रित है, जिसमें पूर्वी निमाड़ की इन सभी में सहभागिता और यहां के सेनानियों के योगदान को प्रकाश में लाया गया है। अंतिम अध्याय लेखिका ने अपने शोध कार्य एवं तथ्य विश्लेषण संबंधी जानकारी प्रदान कर उपसंहार के साथ पूर्ण किया है।

  इतिहास पर लिखना बहुत सावधानी का कार्य होता है। इसमें किसी तरह की कोई चूक नहीं होना चाहिए, ख़ासतौर से तब जबकि शोध कार्य के रूप में किसी पुस्तक को लिखा जा रहा हो तो उसमें किसी भी तरह की कमी की कोई गुंजाइश नहीं होती। पूर्व निमाड़ की स्थिति को लेकर डॉ. मंगलेश्वरी जोशी ने जितनी गहनता के साथ अध्ययन किया उसे इस पुस्तक में रखने का प्रयास किया। पुस्तक हमें यह बताती है कि पूर्व निमाड़ जिला स्वाधीनता आंदोलन में अपनी सक्रिय सहभागिता करता रहा। यहां के स्वतंत्रता सेनानियों ने देश के प्रमुख आंदोलनों में अपनी सक्रिय हिस्सेदारी की। राष्ट्रीय नेतृत्व का यहां प्रभाव पड़ा और स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ सामाजिक चेतना एवं जन जागरूकता के आंदोलन भी इस क्षेत्र में निरंतर होते रहे। यहां के आंदोलन में बुद्धिजीवियों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया और यही कारण रहा कि यहां के बुद्धिजीवी वर्ग की सक्रिय सहभागिता का गवाह पूरा देश बना। इसके साथ ही इस क्षेत्र में मौजूद छोटी-छोटी जनजातियों ने भी आंदोलन में भाग लिया, जिनका ज़िक्र भी पुस्तक में है। यहां की अपनी परंपरा और यहां के विकास की गतिविधियों में भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी निरंतर सक्रिय रहे। पूर्व निमाड़ से भगवंतराव मंडलोई एवं गंगाचरण दीक्षित संविधान निर्माण समिति में भी सदस्य के रूप में शामिल रहे एवं कालांतर में मंत्री पद भी यह प्राप्त हुआ। न सिर्फ पुरुषों ने बल्कि क्षेत्र की महिलाओं कस्तूरी बाई उपाध्याय, राधादेवी आज़ाद, जानकीबाई वर्मा एवं ऐसी ही कई वीरांगनाओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी सहभागिता की।

  ऐतिहासिक तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में डॉ. मंगलेश्वरी जोशी की पुस्तक काफी कुछ कहती है। इस वक्त इतिहास का ज़िक्र पूरे देश में हो रहा है। इतिहास पर कुछ कहना ख़तरे से खाली नहीं मगर फिर भी लेखिका ने इस पुस्तक को ऐतिहासिक तथ्यों के साथ अपने तर्कों से संतुलित करने की कोशिश की है। यह पुस्तक न सिर्फ पूर्व निमाड़ के बल्कि इस तरह अलग-अलग जिलों के लिए भी ऐतिहासिक शोध कार्य की ओर प्रवृत्त करती है। यह उन गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों को सामने लाने की पहल करती है जिन्होंने अपना सर्वस्व देश के लिए कुर्बान कर दिया। ऐसे क़िरदारों को यदि हम इस अमृत महोत्सव वर्ष में पहचान सके, उनके कार्यों का स्मरण कर सके और उनकी पहचान को पूरे देश की पहचान बना सके तो यह हमारा सौभाग्य होगा, देश के लिए गौरव होगा और इस पुस्तक की एक उपलब्धि भी साबित होगा।

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