बड़ा खुलासा : बेईमान व्यापरियों ने 3 साल में कर ली 62 हजार करोड़ रुपए की GST चोरी, नकली चालान के माध्यम से दिया धोखाधड़ी को अंजाम

सीबीआईसी ने देश में 62 हजार करोड़ रुपए की जीएसटी चोरी पकड़ी है। यह चोरी नकली चालान के माध्यम से 3 वर्ष में की गई।

बड़ा खुलासा : बेईमान व्यापरियों ने 3 साल में कर ली 62 हजार करोड़ रुपए की GST चोरी, नकली चालान के माध्यम से दिया धोखाधड़ी को अंजाम
जीएसटी की धोखाधड़ी।

केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) ने पता लगाया इस चोरी का, 2020 से अब तक 1,030 धोखेबाजों को किया गिरफ्तार

एसीएन टाइम्स @ नई दिल्ली । जीएसटी चोरी का बड़ा मामला सामने आया है। केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) ने बीते तीन साल में बेईमान व्यापारियों द्वारा की गई 62 हजार करोड़ रुपए के जीएसटी की धोखाधड़ी पकड़ी है। बदमाशों ने इस कर चोरी को नकली चालान के माध्यम से अंजाम दिया।

CBIC के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार कर अधिकारियों ने बीते तीन वर्षों के दौरान नकली चालान का उपयोग कर 62,000 करोड़ रुपए के माल और सेवा कर (GST) चोरी का पता लगाया है। जानकारी के अनुसार 2020 के बाद से केंद्रीय स्तर पर जीएसटी अधिकारियों द्वारा जीएसटी चोरी करने वालों के विरुद्ध अभियान चलाया जा रहा है। इसके तहत अब तक 1,030 से अधिक बदमाश व्यापारियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। ये वे बेईमान व्यापारी हैं जिन्होंने अवैध रूप से इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाने अथवा पास कराने के लिए नकली चालान का उपयोग किया। माना जा रहा है कि ऐसे अपराधियों की संख्या और अधिक हो सकती है और राशि भी इससे कहीं ज्यादा होगी। ऐसा इसलिए कि अभी इसमें राज्य स्तर के प्रकरणों को शामिल नहीं किया गया है।

अपराधों पर कार्रवाई के लिए बढ़ाई मौद्रिक सीमा

इसके चलते सरकार ने शनिवार को संपन्न हुई जीएसटी परिषद की बैठक में इस तरह के अपराधों पर कार्रवाई के लिए मौद्रिक सीमा को बढ़ा कर दो गुना कर दिया है। जीएसटी परिषद ने विभिन्न अपराधों के लिए कार्यवाही शुरू करने के लिए सीमा को 2 करोड़ रुपए करने की मंजूरी दे दी। यह कार्रवाही डिक्रिमिनलाइजेशन ड्राइव के के रूप में चलेगी।

फर्जी ई-वे बिल और माल की आवाजाही दिखा कर की धोखाधड़ी

CBIC के मुताबिक बेईमान व्यापारियों द्वारा फर्जी ई-वे बिल बना कर और तथा माल की आवाजाही दिखा कर धोखाधड़ी करते हैं। इनके द्वारा नकली चालान बनाए जाते हैं। दरअसल, अलग-अलग राज्यों में पंजीकृत संस्थाएं अपनी संख्या में बदलाव करती रहती हैं, इसलिए उन्हें पकड़ पाना मुश्किल होता है, बावजूद कर अधिकारियों ने यह कर दिखाया। 

यह है सजा का प्रावधान

बता दें कि, वर्तमान में दंड का जो प्रावधान है उसके अनुसार यदि चोरी की गई राशि 2 करोड़ रुपए (लेकिन 5 करोड़ रुपए से अधिक नहीं) से अधिक है तो तीन साल की हो सकती है। यदि कर अपवंचन 1 करोड़ रुपए से अधिक (लेकिन 2 करोड़ रुपए से कम) है, तो आरोपी को 1 साल कारावास की सजा भुगताना होगी।

परिषद ने यह दिया सुझाव

जीएसटी परिषद के तहत कानूनी समिति ने सीमा बढ़ाने का सुझाव दिया है। उसका तर्क है कि, "फर्जी चालान के खतरे को रोकने के लिए और ऐसी नकली/गैर-मौजूद इकाइयों द्वारा इनपुट टैक्स क्रेडिट पारित करने को नियंत्रित करना जरूरी है। इस तरह के अपराध करने वालों को ऐसा कोई अवसर ही नहीं दिया जाना चाहिए। इस तरह सीजीएसटी अधिनियम की धारा 138 (मौद्रिक सीमा से संबंधित) के तहत दिए गए प्रावधानों का दुरुपयोग रोका जा सकता है।

कानून का पालन करने वालों के लिए हैं प्रावधान

कंपाउंडिंग प्रावधान वास्तविक और मौजूदा व्यापारियों के साथ ही कानूनी कार्यवाही को कम करने के लिए हैं। यह उनके लिए भी मददगार हैं जिन्होंने अपराध तो कर लिया है लेकिन लेकिन सुधार करने और कानून के अनुसार अपना व्यवसाय करने के लिए तैयार हैं। इसके उलट  जो कंपाउंडिंग प्रावधान का फर्जी संस्थाएं बनाने और अभियोजन से बचने के लिए जानबूझकर आर्थिक धोखाधड़ी करने में उपयोग करते हैं उन पर रोक लगाने के लिए सख्ती और मॉनिटरिंग जरूरी है। इसलिए, ऐसे व्यापारियों (फर्जी चालान बनाने वाले या उसमें लिप्त लोग) को अपराधों के डिक्रिमिनलाइजेशन से बाहर रखा जाना हितकर होगा।

इस साल शुरू की थी क्रमिक फाइलिंग, यह कदम भी उठाया

जीएसटी अधिकारियों ने इसी साल शुरुआत में फर्जी चालानों की जांच के लिए जीएसटीआर-1 (मासिक और त्रैमासिक रिटर्न) और जीएसटीआर-3बी (जीएसटी भुगतान के साथ महीने के दौरान आपूर्ति) की क्रमिक फाइलिंग शुरू की थी। इसके साथ ही परिषद ने जीएसटी प्रणालियों के समग्र सुदृढ़ीकरण पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए मंत्रियों के एक समूह (जीओएम) का गठन भी किया था। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री अजीत पवार की अध्यक्षता वाले मंत्रिस्तरीय पैनल ने जून में जीएसटी परिषद की बैठक में अपनी रिपोर्ट दी थी। 

ये थे रिपोर्ट के प्रमुख मुद्दे

पैनल द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का पहला मुद्दा नए पंजीकरण और बायोमैट्रिक प्रमाणीकरण का था। दूसरा सिस्टम से नए पंजीकरणकर्ताओं के प्रोफाइल का अध्ययन करना और इन पंजीकरणों का अनिवार्य भौतिक सत्यापन करना था। वहीं तीसरा मौजूदा करदाताओं की जांच करना था, भले ही वे नकली चालान कर रहे हों या नहीं। इनका भौतिक सत्यापन किया जाना था। पैनल ने पतों की जियो-कोडिंग का सुझाव भी दिया। रिपोर्ट तैयार करने के दौरान यह बात सामने आई थी कि नए पंजीकरण की मांग करते समय, कई करदाता गैर-मौजूदा पते/झूठे पते दे रहे थे। इन सभी बिंदुओं और सुझाव के आधार पर ही टैक्स चोरी रोकने का सिस्टम विकसित किया जा रहा है।

ऑनलाइन गेमिंग पर कर लगाने की रिपोर्ट नहीं हो सकी शामिल

ऑनलाइन गेमिंग की करदेयता पर भी रिपोर्ट बहुप्रतीक्षित है। राज्यों के पैनल की रिपोर्ट समय पर नहीं आ पाने से इसे शनिवार की जीएसटी बैठक में शामिल नहीं किया जा सका। CBIC के मुताबिक फिलहाल इस क्षेत्र पर 28 फीसदी जीएसटी लागू रहेगा। इससे संबंधित कार्रवाई योग्य दावों को जुंए अथवा सट्टेबाजी के समान ही माना जाएगा। अभी इसके मूल्यांकन को लेकर भी सहमति नहीं बन सकी है। माना जा रहा है कि यह अगले वित्तीय वर्ष में शुरू हो सकता है।

यह फायदा होगा

वरिष्ठ कर सलाहकार अनिल परवाल के अनुसार पैनल की रिपोर्ट में दिए सुझाव और उस पर होने वाले अमल होने के बाद एप्लिकेशन से मेटा डेटा लाने में मदद करेगा। इसके माध्यम से पते और कर प्रशासन को उपलब्ध हो पाएंगे। इसकी प्रासंगिक उपयोगिता भी वेबसाइट से ऑनलाइन सत्यापित की जा सकेगी। 

GST चोरी मामले में देश में पहली सजा उत्‍तराखंड के फर्म संचालक को

आयुक्त राज्य कर डॉ. अहमद इकबाल के निर्देश पर आठ माह पहले विभाग की केंद्रीयकृत इकाई (सीआइयू) ने फर्जी आइटीसी (इनपुट टैक्स क्रेडिट) क्लेम के मामले में मैनपॉवर आपूर्तिकर्त्ता फर्म पीएस इंटरप्राइजेज समेत छह फर्मों पर छापेमारी की थी। जांच में पता चला था कि पीएस इंटरप्राइजेज के संचालक सुरेंद्र सिंह ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश व हरियाणा की फर्मों से आयरन और व प्लाइवुड की फर्जी खरीद की। यह खरीद अपनी पांच अन्य फर्मों के माध्यम से की। जिन फर्मों से फर्जी खरीद दिखाई गई वे अस्तित्व में ही नहीं हैं। इतना ही नहीं फर्म संचालक सुरेंद्र सिंह ने विभाग से 17.01 करोड़ रुपए का क्लेम भी प्राप्त कर लिया था। मामले में जीएसटी टीम ने 5 अप्रैल 2022 को सुरेंद्र सिंह को गिरफ्तार कर किया था। आठ माह में ट्रायल पूरा हुआ। जिसके चलते मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट हरिद्वार मुकेश चंद्र आर्य ने दोषी को 5 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। एक लाख रुपए अर्थदंड भी लगाया। अर्थदंड नहीं चुकाने पर छह माह अतिरिक्त सजा भुगतनी पड़ेगी।