मठ-मंदिरों की सुरक्षा अखाड़ा परिषद को सौंपने व कानून बनाने की उठी मांग, अभा अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी को ज्ञापन सौंपा

रतलाम के सामाजिक कार्यकर्ता ने मठ-मंदिरों की सुरक्षा अखाड़ा परिषद को सौंपने व कानून बनाने की मांग उठाई है। उन्होंने अभा अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी को ज्ञापन भी दिया।

मठ-मंदिरों की सुरक्षा अखाड़ा परिषद को सौंपने व कानून बनाने की उठी मांग, अभा अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी को ज्ञापन सौंपा
सामाजिक कार्यकर्ता जनक नागल ने ज्ञापन दयाल वाटिका में दिया। इस दौरान अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष हमंत रविंद्र पुरी जी के अलावा महामंडलेश्वर चिदंबरानंद जी महाराज भी मौजूद थे। नागल ने ज्ञापन में बताया कि लंबे समय से दुनिया की अनेकों शक्तियां सनातन धर्म हिंदू धर्म एवं संस्कृति को खत्म करने हेतु लगातार प्रयासरत हैं। देश में अनेकों प्रदेशों में हिंदुओं की जनसंख्या लगातार कम हो रही है।
नागल के अनुसार देश में चर्च और मस्जिदों की संख्या बढ़ रही है। वहीं दूसरी ओर मठ मंदिरों की स्थितियां जर्जर और दयनीय हो रही हैं। तुष्टिकरण के चलते अनेक सरकारें भी अन्य धर्म के धार्मिक स्थलों और शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु खजाना खोल कर सुविधा दे रही हैं। जब हिंदू धर्म और मंदिरों की बात आती है तो धर्मनिरपेक्ष हो जाती हैं।
पुजारियों का मानदेय भी बहुत कम है
शासन नियंत्रित मठ-मंदिरों के पुजारियों को जो मानदेय दिया जाता है वह इतना कम है कि पुजारी अपने परिवार का तो क्या स्वयं का भी लालन-पालन नहीं कर सकता है। फिल्म हो या टीवी जब चाहे कोई भी हमारी भगवानों का, त्योहारों का अपमान कर देता है।
अखाड़ा परिषद का निर्णय सर्वमान्य, सरकार भी मानती है
भगवान आदि शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म की रक्षा एकता और अखंडता हेतु देश के चार स्थानों उत्तर में बद्रीनाथ दक्षिण में रामेश्वरम पूर्व में जगन्नाथ पुरी तथा पश्चिम में द्वारिका पर अखाड़ों की स्थापना की थी। वर्तमान में देश में 13 हैं। इन सभी अखाड़ों को अखाड़ा परिषद नियंत्रित करती है। यह जो निर्णय लेती है वह सर्वमान्य होकर सरकार तक को मानना पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट भी कर चुकी है मंदिर का संचालन व व्यवस्था भक्तों का काम
सुब्रमण्य स्वामी की अपील पर जनवरी 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के नटराज मंदिर को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने वाले आदेश में कहा है कि मंदिरों का संचालन और व्यवस्था सरकार का नहीं भक्तों का काम है। दिल्ली के मां काली माता सिद्ध पीठ मंदिर से अखिल भारतीय संत समिति के द्वारा भी मठ मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने हेतु कानून बनाने की मांग की है। महंत सुरेंद्रनाथ अवधूत महाराज ने भी सरकार से मांग की है की मठ मंदिरों का प्रबंधन तुरंत साधु-संतों को सौंप देना चाहिए।
रतलाम में हुई करोड़ों की भूमि की हेराफेरी, मौजूदा बाजार मूल्य 1 हजार करोड़ से ज्यादा
जनक नागर के अनुसाल रतलाम जैसे छोटे से जिले में राजस्व अभिलेख में 1729 मंदिर शासकीय रिकॉर्ड में दर्ज होकर उनके नाम पर 4503.653 हेक्टर भूमि अंकित हैं। जिले के बाहर स्थित 25 देवस्थान हैं जिनके-जिनके नाम पर 106.442 हेक्टेयर भूमि दर्ज है। यह सारी भूमि माफिक ओकाफ होने से अहस्तांतरणीय है। इसके बाद भी रिकॉर्ड में करोड़ों की भूमि की हेराफेरी हो गई है।
देवस्थान की संपत्तियों में हेराफेरी करने की शिकायत हमारे द्वारा सन 2008 में मुख्यमंत्री एवं संभाग आयुक्त को की थी। उसके बाद हुई जांच में जिले के करीब 46 मंदिरों की 314.540 है। भूमि मंदिरों के स्थान पर निजी खातों में दर्ज होना पाया गया है (करीब 1600 बीघा जमीन है) जिसका वर्तमान बाजार मूल्य 1000 करोड़ रुपए से अधिक है।
आदेश तो पारित हुआ लेकिन भूमि का अधिग्रहण नहीं हुआ
ज्ञापन में बताया गया है कि दिनांक 12.07 2010 में तहसीलदार रतलाम द्वारा पारित एक आदेश के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय का वीकली नोट सिविल अपील नम्बर 2087/ 2000 के आदेश दिनांक 14.03.2000 में स्पष्ट है कि कपट तथा न्याय कभी साथ नहीं रहते हैं। एक प्राचीन सूत्र है जिसकी प्रकृति शताब्दियों के बाद भी लुप्त नहीं हुई है। इसका हवाला देते हुए शासन में वैष्ठित करने के आदेश दिए हैं। उपरोक्त आदेश भी भूमि को अधिग्रहण नहीं हुआ। इससे उक्त खातेदारों ने न्यायालय से स्टे प्राप्त कर लिया था। वर्तमान में क्या स्थिति है, पता नहीं है।
सरकार से हो कानून बनाने की मांग
रतलाम जैसे छोटे से स्थान पर देवस्थान की भूमि की हेराफेरी की यह स्थिति है तो देश में तो देवस्थान की अरबों-खरबों रुपए की संपत्तियों की हेराफेरी हुई होगी। अतः मठ-मंदिरों की संपत्तियों की सुरक्षा, उत्थान, नियंत्रण एवं देख-रेख अखाड़ा परिषद को सौंपने हेतु शासन से कानून बनाने की मांग की जाए। अखाड़ा परिषद के मार्गदर्शन में सनातन धर्म की रक्षा एकता और अखंडता हेतु (जैसे देश के चार स्थानों पर भगवान श्री शंकराचार्य जी ने मठों की स्थापना की थी) उसी प्रकार पूरे देश के 26 जिलों में मठों की शाखाओं की स्थापना की जाए। मठों की स्थापना के पश्चात इनके माध्यम से वैदिक शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार भी उपलब्ध कराया जाकर धर्म और संस्कृति पर आघात पहुंचाने वाले तत्वों पर अंकुश लगाया जा सकता है।