श्रीमद् भागवत कथा : मृत्यु लोक में माता अनुसूइया जैसा कोई नहीं, उनके जैसा ही हो हर महिला का चरित्र- श्री देवस्वरूपानंद महाराज

रतलाम । श्री अखंड ज्ञान आस्रम में स्वामी श्री स्वरूपानंद जी महाराज की दूसरी पुण्यतिथि मनाई जा रही है। इसमें कथा के साथ ही निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर का भी आयोजन किया गया।

श्रीमद् भागवत कथा : मृत्यु लोक में माता अनुसूइया जैसा कोई नहीं, उनके जैसा ही हो हर महिला का चरित्र- श्री देवस्वरूपानंद महाराज
श्रीमद् भागवत कथा के दौरान माता अनुसूईया के चरित्र पर प्रकाश डालते स्वामी श्री देवस्वरूपानंद जी महाराज।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । हर महिला का चरित्र माता अनुसूईया जैसा होना चाहिए जो अपने पति की तन व मन से सेवा करती थीं। उनके जैसा मृत्यु लोक में कोई नहीं है। यह बात सैलाना बस स्टैंड क्षेत्र स्थित श्री अखंड ज्ञान आश्रम में श्री स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज के द्वितीय निर्वाण दिवस के अवसर पर आयोजित श्रीमद भागवत कथा के दौरान व्यास पीठ से श्री स्वामी देवस्वरूपानंद महाराज ने कही।

स्वामी जी ने उन्होंने कहा कि माता अनुसूईया का विवाह ऋषि अत्रे से हुआ था। महिलाओं में ईर्ष्या की भावना बहुत अधिक होती है। महर्षि नारद ने जब देवलोक में माता अनुसूईया के सतित्व की  तारीफ मां पार्वती, लक्ष्मी व सरस्वती से की तो उन्होंने ईर्ष्या से वशीभूत होकर ब्रह्मा, विष्णु, महेश को परीक्षा लेने माता अनुसूईया के पास भोजन-भिक्षा लेने भेजा। उस समय अत्रे मुनि वन में गए हुए थे। यदि किसी व्यक्ति के घर पर कोई भी भिक्षुक भोजन-पानी की भिक्षा लेने आए तो उसे तुरंत दे देना चाहिए। परंतु भिक्षा लेने आए देवताओं ने माता अनुसूईया से कहा कि वे उनकी जाँघ पर बैठकर भिक्षा ग्रहण करेंगे।

अभिमंत्रित जल से बनाया दिया देवों को बच्चा

स्वामी जी ने बताया कि माता अनुसूईया ने तप से जान लिया था कि ये तीनों ब्राह्मण के वेश में ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं। अतः उन्होंने अभिमंत्रित जल ब्रह्मा, विष्णु, महेश पर छिड़का जिससे वे तीनों छह माह के बच्चे बन गए। माता अनुसूईया ने उन बच्चे बने देवताओं को गोद में बिठाकर भिक्षा ग्रहण करवाई। उसके बाद में उन्हें पालने में लिटा दिया। कहने का तात्पर्य यह है कि महिलाएं अपने सतीत्व से सब कुछ कर सकती हैं।

वासना छोड़ें, परलोक की कामना करें

श्री स्वामी देवस्वरूपानंद महाराज ने कहा कि सारी वासनाओं का मूल शरीर में होता है। व्यक्ति को इह लोक की वासना छोड़ना चाहिए तथा परलोक की कामना करना चाहिए। व्यक्ति भगवान की अनन्य भक्ति करें तो भवसागर के पार हो जाता है। जैसे-जैसे मनुष्य की आयु बढ़ती है वृद्ध शरीर संकुचित होता जाता है तथा त्रष्णा बढ़ती जाती है। जब मृत्यु नजदीक हो तो परमात्मा का स्मरण करना चाहिए, अंत:करण पटल से परमात्मा का चिंतन करना चाहिए व शास्त्रों का पठन-पाठन करना चाहिए। संतों के सानिध्य व शब्दों को श्रवण करने से व्यक्ति के अज्ञान की गांठ धीरे-धीरे खुल जाती है तथा भगवत प्राप्ति होती है।

निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर आयोजित

राकेश पोरवाल ने बताया कि कथा के प्रारंभ में कथा जजमान दिनेश राय व पद्मा राय ने पोथी पूजन किया। अंत में आरती कर प्रसादी वितरित की गई। इस अवसर पर हंसा पाटनी, कमल बाबूजी, कैलाश जाट, रतनलाल जौहार, मनोहर सिंह, विक्रम सिंह पंवार, सुरेश पापटलाल, भगवती सहित नागरिक मौजूद थे। स्वामी स्वरूपानंद महाराज की द्वितीय पुण्यतिथि के अवसर पर अखंड ज्ञान आश्रम में नि:शुल्क स्वास्थ्य परीक्षण एवं परामर्श शिविर भी आयोजित किया गया। इसमें डॉ. रामेंद्र गुप्ता व डॉ. नैंसी गुप्ता ने नागरिकों की नि:शुल्क जांच की। घुटने व कमर दर्द के लिए परामर्श दिया तथा औषधि वितरित की। शुगर की जांच व फिजियोथैरेपी भी की गई।