कोर्ट का फैसला : पहलवान बाबा की दरगाह जबरन तोड़ने व पूजा करने से रोकने का वाद खारिज, 6 हिंदुओं और 6 मुस्लिमों ने लगाया था आरोप लेकिन प्रमाण नहीं दे सके

तीय व्यवहार न्यायाधीश कनिष्ठ खंड अनुपम तिवारी ने पहलवान शाह बाबा की दरगाह जबरन तोड़ने और पूजा करने से रोकने के आरोप वाला वाद खारिज कर दिया है। न्यायालय ने इसके लिए क्या तर्क दिया, जानने के लिए पढ़ें यह खबर।

कोर्ट का फैसला : पहलवान बाबा की दरगाह जबरन तोड़ने व पूजा करने से रोकने का वाद खारिज, 6 हिंदुओं और 6 मुस्लिमों ने लगाया था आरोप लेकिन प्रमाण नहीं दे सके
रतलाम में पहलवान शाह बाबा की दरगाह जबरन तोड़ने और पूजा करने से रोकने संबंधी वाद न्यायालय ने खारिज कर दिया।

नीरज कुमार शुक्ला

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । पहलवान शाह बाबा की दरगाह से जुड़े बहुचर्चित मामले में छह हिंदुओं और 6 मुस्लिमों द्वारा प्रशासन के विरुद्ध दायर वाद को न्यायालय ने निरस्त कर दिया है। वादियों ने प्रशासन पर जबरन दरगाह तोड़ने और पूजा करने से रोकने का आरोप लगाया था परंतु वे इसके प्रमाण नहीं दे सके। इससे न्यायालय ने वाद को सुनवाई योग्य ही नहीं पाया। 

अपर लोक अभियोजक एवं शासकीय अभिभाषक सतीश त्रिपाठी ने बताया कि 9 दिसंबर, 2024 को  समरोज पिता फिरोज खान, संजय जैन पिता मनोहरलाल जैन, हेमंतसिंह चंद्रावत पिता गोवर्धनसिंह चंद्रावत (एडवोकेट), आनंद पिता देवीलाल डांगी, भंवरलाल कैथवास पिता रामदुलारे, प्रीति पति संजय जैन, अनीता पिता वरसिंह, सलाम पिता रमजानी कुरैशी, अब्बास पिता गफ्फार शाह, एहसान अहमद पिता याकूब खान, जफर हुसैन पिता हामिद शाह एवं अब्दुल हनीफ पिता अब्दुल गनी ने दरगाह कमेटी के पदाधिकारी एवं श्रद्धालु की हैसियत से न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया था।

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वाद में उन्होंने बताया था कि पहलवान शाह बाबा की 150 फीट चौड़ी एवं 40 फीट लंबी दरगाह पर पूजा और धार्मिक गतिविधियां संचालित करने के लिए की अनुमति प्रदान की जाए। मामले की सुनवाई तृतीय व्यवहार न्यायाधीश कनिष्ठ खंड अनुपम तिवारी के न्यायालय में हुई। यहां शासन की ओर से एक आवेदन प्रस्तुत किया गया था। इसमें तर्क दिया गया था कि डोसीगांव-रतलाम से गुजरने वाली चार-लेन सड़क का निर्माण हो रहा है। वादी क्रमांक 1 के रिश्तेदार ने पहले ही एक अन्य वाद सिविल न्यायाधीश कनिष्ठ श्रेणी के समक्ष दायर किया हुआ है। अतः वादियों द्वारा प्रस्तुत आवेदन सुनवाई योग्य नहीं है।

फोरलेन निर्माण पर उठाया था सवाल

अधिवक्ता त्रिपाठी ने बताया कि वादियों ने अपने लिखित उत्तर में शासन के उक्त आवेदन का विरोध करते हुए यह तर्क प्रस्तुत किया कि राज्य सरकार मनमाने तरीके से सड़क का निर्माण और चौड़ीकरण कर रही है। निर्माण की पूरी योजना का कोई नक्शा प्रस्तुत नहीं किया है। चार-लेन सड़क किसी अवसंरचनात्मक परियोजना से जुड़ी हुई नहीं है। वादीगण पक्षकार नहीं हैं, इसलिए वे ऐसी कार्रवाई से अवगत नहीं हैं। सड़क चौड़ीकरण के नाम पर धार्मिक पूजा स्थल को गलत तरीके से हटा दिया गया है और भक्तों को किसी भी धार्मिक गतिविधि से रोका जा रहा है। सार्वजनिक भावना का उचित सम्मान किया जाना चाहिए। शासन गलत तरीके से सामान्य श्रद्धालुओं को दरगाह पहलवान शाह में पूजा करने से रोक रहा है।

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शासकीय अधिवक्ता ने यह दिया तर्क

शासकीय अधिवक्ता त्रिपाठी ने न्यायालय में जोरदार तर्क किया। उन्होंने बताया कि वाद प्रस्तुत करने का कोई कारण नहीं है क्योंकि वाद में यह भी नहीं बताया गया है कि किस दिन और कब प्रतिवादी शासन ने वादीगण में से किसी को दरगाह पहलवान शाह में पूजा करने से रोका या विरोध किया। क्षेत्राधिकार के अभाव में प्रस्तुत वाद गलत है। यह इसलिए भी गलत है क्योंकि इसमें कारण के बारे में आवश्यक दस्तावेज नहीं लगाए गए हैं। वादी द्वारा वाद प्रस्तुत करने का कोई कारण नहीं होने से वाद खारिज करने योग्य है।

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इसलिए न्यायालय ने खारिज किया वाद

दोनों पक्षों को सुनने के बाद तृतीय व्यवहार न्यायाधीश कनिष्ठ खंड तिवारी अपने निर्णय में कहा कि दावे में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि जमीन वक्फ की है या नहीं और उन्हें वहां प्रार्थना, पूजा करने से किसने रोका। दावे में कहा गया कि सार्वजनिक हित के लिए चार लेन सड़क नहीं बनाई गई, वरन जबरन ही यह काम किया गया है। न्यायालय ने यह भी लिखा कि राज्य सरकार ने दरगाह द्वारा किए गए अतिक्रमण के खिलाफ नोटिस जारी किया है। प्रक्रिया शुरू की गई और अतिक्रमण हटा दिया गया। राज्य ने दरगाह की कब्रगाह को स्टील कैबिनेट लगाकर संरक्षित किया है। वादी पक्ष ने खुद को समाज का सदस्य बताते हुए वाद दायर किया है, लेकिन किसी भी समाज का नाम वाद में पक्षकार के रूप में नहीं जोड़ा गया है। यह उल्लेख नहीं है कि दरगाह वक्फ से संबंधित है या नहीं इसलिए वाद खारिज किया जाता है।