ग़ज़ल का प्रभाव और परंपरा बहुत समृद्ध- सिद्दीक़ रतलामी

जनवादी लेखक संघ द्वारा 'ग़ज़ल की परंपरा' विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें ग़ज़लकारों ने अरबी, फ़ारसी और हिंदुस्तानी ग़ज़ल के साथ ही दुनिया की विभिन्न भाषाओं में कहीं जा रही ग़ज़ल की परंपरा और उनकी पृष्ठभूमि पर विस्तार विचार व्यक्त किए।

ग़ज़ल का प्रभाव और परंपरा बहुत समृद्ध- सिद्दीक़ रतलामी
ग़ज़ल परंपरा पर आयोजित विचार गोष्ठी में ग़ज़ल के महत्व और उसकी खूबसूरती पर विचार व्यक्त करते ग़ज़लकार।

जनवादी लेखक संघ द्वारा ग़ज़ल की परंपरा पर विचार गोष्ठी आयोजित

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । ग़ज़ल एक साहित्यिक विधा है। इसकी तारीख़ लगभग सोलह सौ वर्ष पुरानी है। छठी सदी में ग़ज़ल का जन्म अरब देश में हुआ। भारत में ग़ज़ल की बाक़ायदा शुरुआत 13वीं सदी में हो चुकी थी। यहां अमीर खुसरो से पहले ग़ज़ल का कोई बड़ा शाइर हमारे पढ़ने में नहीं आया। अमीर खुसरो मूल रूप से फ़ारसी में शायरी करते थे, लेकिन उन्हें खड़ी बोली हिंदी का आदि कवि कहा जाता है। खड़ी बोली हिंदी की उनकी रचनाएं बहुत मशहूर भी हुईं। अमीर खुसरो ने ग़ज़ल में फ़ारसी और खड़ी बोली हिंदी का सफल प्रयोग भी किया। उन्होंने अपने लेखन में पहेलियां, मुकरियां, दो सुखने भी कहे जो आज तक पसंद किए जाते हैं।

उक्त विचार जनवादी लेखक संघ द्वारा 'ग़ज़ल की परंपरा' विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में मुख्य वक्ता वरिष्ठ शायर सिद्दीक़ रतलामी ने व्यक्त किए। उन्होंने अरबी, फ़ारसी और हिंदुस्तानी ग़ज़ल के साथ ही दुनिया की विभिन्न भाषाओं में कहीं जा रही ग़ज़ल की परंपरा और उनकी पृष्ठभूमि पर विस्तार से अपनी बात कही।

ग़ज़ल की परंपरा में प्रगतिशील विचारधारा सदैव मुखरित हुई- प्रो. चौहान

वरिष्ठ कवि प्रो. रतन चौहान कहा कि ग़ज़ल की परंपरा में प्रगतिशील विचारधारा सदैव मुखरित होती रही है। ग़ज़लकारों ने अपनी ग़ज़लों के माध्यम से वक़्त और हालात का ज़िक्र किया, साथ ही समाज में व्याप्त विषमताओं पर भी अपनी बात कही। उन्होंने प्रमुख शायरों द्वारा कहे गए शेरों को भी उद्धृत किया। वरिष्ठ शायर फ़ैज़ रतलामी ने कहा कि ग़ज़ल की परंपरा बहुत समृद्ध है। भारत में जिस तरह से ग़ज़ल कही जा रही है उसे देखते हुए आने वाले वक़्त में काफ़ी संभावनाएं नज़र आती हैं।

ग़ज़ल परंपरा पर चर्चा होना आज की आवश्यकता- खोकर

अध्यक्षता करते हुए शायर अब्दुल सलाम खोकर में कहा कि ग़ज़ल का अपना मिज़ाज और रंग है। इसमें दो पंक्तियों में अपनी बात कहना बहुत कठिन काम है। यह सुखद है कि देश की विभिन्न भाषाओं में अब ग़ज़लें कहीं जा रही हैं। उन्होंने कहा कि ग़ज़ल की परंपरा पर चर्चा होना आज की आवश्यकता भी है। संचालन करते हुए यूसुफ जावेदी ने उर्दू और हिंदी ग़ज़ल की स्थिति और उसके प्रभाव पर प्रकाश डाला। जनवादी लेखक संघ के अध्यक्ष रमेश शर्मा एवं सचिव रणजीत सिंह राठौर ने अतिथियों का शब्दों से स्वागत किया। विचार गोष्ठी में बड़ी संख्या में ग़ज़ल प्रेमी उपस्थित थे। आभार कवि यशपाल सिंह ‘यश ने माना।