प्रसंग वश : ‘कितनी मुश्किल से फुर्सत का संडे आया हाथ, बहुत दिनों के बाद बैठकर खाना खाया साथ’- अज़हर हाशमी
भारतीय संस्कृति में सहभोज का बड़ा महत्व है। इसे हम एक संस्कार भी कह सकते हैं है। मंत्र ‘ओम् सह ना ववतु सह नौ भुनक्तु’ सहभोज के इसी महत्व को प्रदर्शित करता है। इसका आशय है कि हम एक साथ तेजयुक्त हों, एक साथ भोजन करें। कवि अज़हर हाशमी की यह कविता भी इसी महत्व को दर्शाती है।

बहुत दिनों के बाद बैठकर खाना खाया साथ !
अज़हर हाशमी
कितनी मुश्किल से फुर्सत का संडे आया हाथ,
बहुत दिनों के बाद बैठकर खाना खाया साथ!
शहरी जीवन में कुछ ऐसी होती भागमभाग,
सबकी अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों से ऐसा हुआ सामाना,
भूल गए परिवारजनों के साथ बैठकर खाना।
मोबाइल को दूर किया जो बन बैठा था नाथ,
बहुत दिनों के बाद बैठकर खाना खाया साथ!
साथ हुआ तो रिश्तों की ऊष्मा को पहचाना,
पूर्व भोज के बातों का खुल गया छिपा खाना।
मधुर-मधुर सम्वादों को सुनकर किया अवगाहन,
सम्वादों के सेतु पर चलता रिश्तों का वाहन।
साथ पिया तो मन को भाया काढ़ा यानी क्वाथ,
बहुत दिनों के बाद बैठकर खाना खाया साथ!
‘सहना ववतु’ ‘सहनो भुनक्तु’ है शुभ मंत्र पुराना,
‘तेजयुक्त हों साथ - साथ हम’ यह संदेश सुहाना।
अपने सुख-दुख साझाकर जब रोटी बांटी - खायी,
‘सहनो भुनक्तु’ की महिमा तब हमें समझ में आयी।
भारतीय संस्कृति - महत्ता से ऊंचा है माथ,
बहुत दिनों के बाद बैठकर खाना खाया साथ!
(प्रो. अज़हर हाशमी ख्यात कवि, साहित्यकार, समालोचक एवं कला एवं विज्ञान महाविद्यालय रतलाम के पूर्व व्याख्याता हैं। आपकी यह रचना हिंदी दैनिक पत्रिका के 9 फरवरी, 2025 के अंक से साभार)