बातें कवियन की : साहित्य के दिग्गज जब हुए 'अंडर ऐज'- आशीष दशोत्तर

युवा साहित्यकार अशीष दशोत्तर से जानिए साहित्य जगत के दो दिग्गज कवि, साहित्यकार, अनुवादक और गीतकार प्रो. अज़हर हाशमी और प्रो. रतन चौहान ‘अंडर ऐज’ कब हुए।

बातें कवियन की : साहित्य के दिग्गज जब हुए 'अंडर ऐज'- आशीष दशोत्तर
साहित्य जगत के दिग्गज प्रो. रतन चौहान और प्रो. अज़हर हाशमी के साथ युवा साहित्यकार एवं इस आलेख के लेखक आशीष दशोत्तर।

आशीष दशोत्तर

साहित्य साधना में अपना पूरा जीवन खपा देने वाले दिग्गजों के क़रीब जब बैठो तो उनकी ज़िन्दगी के कई ख़ूबसूरत पहलू उभर कर सामने आते हैं। इन पहलुओं में जीवन का संघर्ष भी होता है, वे यादगार लम्हे भी होते हैं जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता, वे रोचक बातें भी होती हैं जिनसे ज़िन्दगी गुलज़ार होती है।

ये खूबसूरत लम्हें जब कभी मिलते हैं तो मुझ जैसा तालिबे इल्म इन्हें अपनी स्मृतियों में क़ैद करने की कोशिश करता है क्योंकि ये हमारी धरोहर हैं, हमारी थाती हैं। इन की बातें सुनने से नई रोशनी भी मिलती है और उन पलों को महसूस करने का मौका भी मिलता है जो आज के वक़्त में असंभव से हो चले हैं।

यहां हम बात कर रहे हैं साहित्य के दो दिग्गजों की। एक हैं राष्ट्रीय स्तर पर अपने गीतों के माध्यम से पहचान बना चुके वरिष्ठ गीतकार, चिंतक, प्रवचनकार, अंक ज्योतिष विशेषज्ञ प्रो. अज़हर हाशमी जिनकी वाणी में मधुरता है, शब्दों में वैविध्य और लेखन में निरंतरता। दूसरे साहित्य साधक हैं वरिष्ठ कवि और अनुवादक प्रो. रतन चौहान। सादगी के पर्याय प्रो. चौहान ने जयशंकर प्रसाद की कामायनी का लयात्मकता के साथ अंग्रेज़ी अनुवाद किया। निराला की राम की शक्ति पूजा, सरोज स्मृति जैसी रचनाओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया। ग़ालिब और मुक्तिबोध भी उनके अनुवाद में शामिल हुए।

बहरहाल, इन दोनों वरिष्ठ साहित्य साधकों की विद्वता और उपलब्धियां अपनी जगह परंतु इनकी ज़िन्दगी से जुड़े कुछ रोचक पहलुओं को हम अपनी स्मृतियों में क़ैद करते हैं। ये दोनों शख्सियतों ने विक्रम विश्वविद्यालय से ही शिक्षा प्राप्त की। हाशमी जी उज्जैन में तो चौहान साहब रतलाम कॉलेज में रहे। उस समय इस विश्वविद्यालय के साथ दो अन्य विश्वविद्यालय भी जुड़े थे और तीनों विश्वविद्यालय की मेरिट सूची बना करती थी। 1965 की प्रावीण्य सूची में प्रो. रतन चौहान ने स्थान पाया और 1966 की प्रावीण्य सूची में प्रो. अज़हर हाशमी अव्वल रहे। इनके साथ पढ़ने वाली शख्सियतों भी कम नहीं थीं। सुदीप बनर्जी, विनोद पांडेय, रूप पमनानी, सुदीप बनर्जी की बहन, गुलशन ओबेरॉय, अमरजीत कौर और भी बहुत। ये सब ऐसी शख्सियतें थीं जो उस दौर में तीनों यूनिवर्सिटी में अपनी विद्वत्ता के लिए पहचानी जाती थीं। जब भी वाद विवाद, भाषण स्पर्धाएं हुआ करती तो ये सभी बढ़ चलकर हिस्सा लिया करते और अपने वक्तत्व कला का परिचय दिया करते।

वह दौर साहित्य की दृष्टि से बहुत दुर्लभ था। उज्जैन में डॉ. हरिवंश राय बच्चन जैसे विद्वानों का सान्निध्य हाशमी जी को मिला। डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन के वे प्रिय शिष्य रहे ही। इधर, रतलाम कॉलेज में वीरेंद्र मिश्र, भवानी प्रसाद मिश्र, गोपाल दास ‘नीरज’, रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल’, आलम फतेहपुरी, हक़ कानपुरी जैसे विद्वान साहित्यकारों से मिलने का सौभाग्य प्रो. रतन चौहान को मिला। जब वह ग्वालियर में थे तब फिराक गोरखपुरी साहब का भी आगमन हुआ था।

अपने दौर के सुप्रसिद्ध साहित्यकारों के बीच रहकर इन्होंने जो कुछ पाया उससे बहुत अधिक साहित्य जगत को प्रदान किया। आज ये दोनों शख्सियतें जिस मुकाम पर हैं वह हम जैसे साहित्य के विद्यार्थियों के लिए बहुत प्रेरणादायक हैं।

बहरहाल, इन दोनों के जीवन से जुड़ा यह रोचक संस्मरण है। ये दोनों अपने विद्यार्थीकाल में इतने प्रखर हुआ करते थे कि अपनी पढ़ाई कम उम्र में ही पूरी कर लिया करते थे। प्रो. अज़हर हाशमी ने जब हायर सेकंडरी उत्तीर्ण की तब राजस्थान में हायर सेकंडरी के लिए निर्धारित उम्र को भी छू नहीं पाए थे, यानी अंडर ऐज ही थे। इधर, प्रो. रतन चौहान प्रारंभ से ही प्रखर रहे और उन्हें चौथी कक्षा पढ़ना ही नहीं पड़ी। तीसरी से सीधे पांचवी में पहुंच गए। लिहाजा वे भी आगे जाकर अंडर ऐज ही रहे।

इन दोनों शख्सियतों से जुड़ी ये महत्वपूर्ण बातें बताती हैं कि हम उनके बीच हैं और इनके जीवन से जुड़े कई संदर्भों से आज भी दूर हैं। आइए, ऐसी शख़्सियतों के करीब जाएं इसे मिले उनके पास बैठें इसे बतियाएं। यक़ीनन हमें वह सबकुछ कुछ हासिल होगा, जो हमारी ज़िन्दगी में कभी न कभी प्रेरक बनेगा।

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 आशीष दशोत्तर

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मध्यप्रदेश

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