अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस (1 मई) : ‘श्रमिक जगत की चेतना, श्रमिक जगत की आस...’ -अज़हर हाशमी

अंतरराष्ट्रीय मजदूर (श्रमिक) दिवस (1 मई) पर कवि, चिंतक, व्यंग्यकार, लेखक और पूर्व प्राध्यापक अज़हर हाशमी द्वारा अभी-अभी रचे गए दोहे सलाम है सृजन और निर्माण के मूल आधार श्रमिकों के लिए जो आपको जरूर पसंद आएंगे।

अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस (1 मई) :  ‘श्रमिक जगत की चेतना, श्रमिक जगत की आस...’ -अज़हर हाशमी
अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस (1 मई) पर विशेष।

श्रमिक जगत की चेतना

1

मज़दूरों की वजह से, उद्योगों में प्राण।

वहां श्रमिक ही नींव है, जहां भी है निर्माण।।

2

कुटिया हो अथवा किला, श्रमिक मूल आधार।

श्रमिक बिना निर्माण का, होता नहीं विचार।।

3

राम सेतु निर्माण में, था जन का कल्याण।

श्रमिक बने वानर सभी, तभी हुआ निर्माण।।

4

हल-हथौड़ा और क़लम, तीनों श्रम के वस्त्र।

पहले दो तो अस्त्र हैं, और तीसरा शस्त्र।।

5

श्रमिक जगत की चेतना, श्रमिक जगत की आस।

जगत अगर है देह तो, श्रमिक देह की सांस।। 

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अज़हर हाशमी

(कवि, चिंतक, समालोचक, ज्योतिषी, लेखक)