मंदसौर गोलीकांड को लेकर मप्र शासन को उच्च न्यायालय ने जारी किया नोटिस, पारस सकलेचा की याचिका पर 4 सप्ताह में जवाब देने का दिया आदेश

मंदसौर गोलीकांड के मामले में उच्च न्यायालय द्वारा सरकार को नोटिस जारी किया गया है। इसमें जैन आयोग की जांच रिपोर्ट विधानसभा में प्रस्तुत नहीं करने और अब तक कोई कार्रवाई नहीं करने पर 4 हफ्ते के भीतर जवाब तलब किया गया है।

मंदसौर गोलीकांड को लेकर मप्र शासन को उच्च न्यायालय ने जारी किया नोटिस, पारस सकलेचा की याचिका पर 4 सप्ताह में जवाब देने का दिया आदेश
पारस सकलेचा की याचिका पर हाईकोर्ट ने शासन को जारी किया नोटिस।

जून 2017 में हुआ था गोलीकांड जिसमें 5 किसानों की हुई थी मौत, मामले की जांच के लिए गठित हुआ था जैन आयोग

एसीएन टाइम्स @ रतलाम मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने मंदसौर के बहुचर्चित गोलीकांड को लेकर मध्य प्रदेश शासन को नोटिस जारी किया है। इसमें पूछा गया है कि गोलीकांड की जांच के लिए गठित जैन आयोग की रिपोर्ट अभी तक पटल पर क्यों नहीं रखी गई। न्यायालय ने चार हफ्ते के भीतर जवाब प्रस्तुत करने का आदेश दिया है। 

किसान आंदोलन के दौरान गत 06 जून, 2017 को मंदसौर में गोलीकांड हुआ था। इसमें 5 किसानों की मृत्यु हुई थी। मामले की जांच के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश जे. के. जैन की अध्यक्षता में “जैन आयोग” का गठन किया था। आयोग ने अपनी अंतिम रिपोर्ट शासन को 13 जून, 2018 को सौंप दी थी। जाँच आयोग अधिनियम- 1952 की धारा 3 के अनुसार, शासन का दायित्व है कि वह जाँच आयोग की रिपोर्ट तथा रिपोर्ट की अनुशंसा अनुसार की गई कार्रवाई 6 माह के भीतर विधानसभा में प्रस्तुत करे। इसके बावजूद आज तक शासन द्वारा न तो रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई की गई और न ही अधिनियम के अनुसार रिपोर्ट विधानसभा में प्रस्तुत की गई। 

पारस सकलेचा ने प्रस्तुत की थी याचिका

इसके चलते सामाजिक कार्यकर्ता एवं रतलाम के पूर्व महापौर पारस सकलेचा ने माननीय उच्च न्यायालय से याचिका दायर कर प्रार्थना की थी कि शासन को मंदसौर गोलीकांड की रिपोर्ट विधानसभा मे पेश करने के लिए आदेशित करें। इस पर उच्च न्यायालय इंदौर के न्यायमूर्ति सुश्रुत अरविन्द धर्माधिकारी तथा प्रकाशचंद्र गुप्ता की युगल पीठ ने सुनवाई करते हुए शासन को नोटिस जारी किया। इसमें चार हफ़्ते में जवाब प्रस्तुत करने के आदेश दिए। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी अधिवक्ता प्रत्यूष मिश्र ने की।

शासन ने यह दिया था तर्क

बताते चलें कि, 14 फरवरी, 2023 को शासन की ओर से सकलेचा की याचिका पर प्रारंभिक आपत्ति उठाई गई थी। तर्क दिया गया था कि याचिका न्यायालय के समक्ष प्रचलन योग्य नहीं है। बहस का मुख्य आधार यह था कि न्यायालय द्वारा जांच आयोग अधिनियम की धारा 3 (4) के अंतर्गत शासन को विधानसभा के समक्ष जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने हेतु आदेशित नहीं किया जा सकता है। इस पर याचिकाकर्ता की ओर से भी बहस की गई। सकलेचा के अभिभाषक ने तर्क दिया कि न्यायालय द्वारा धारा 3(4) का उल्लंघन होने पर शासन को जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने हेतु उचित आदेश प्रदान किया जा सकता है।