ग़ज़ल 2 जून के लिए... ग़रीबों को मिले ‘आशीष’ दो जून रोटी का- आशीष दशोत्तर

आज 2 जून है। वैसे तो यह एक महीने की तारीख है लेकिन दो जून का आशय दो वक्त से भी है जिसकी रोटी के लिए ही आदमी ताउम्र जद्दोजहद करता है। जद्दोजहद पर आधारित एक ग़ज़ल, आप भी पढ़ें और दूसरों को भी पढ़ाएं।

ग़ज़ल 2 जून के लिए... ग़रीबों को मिले ‘आशीष’ दो जून रोटी का- आशीष दशोत्तर
ग़ज़ल... मसअला दो जून की रोटी का।

आसरा दो जून रोटी का...

 

प्रश्न है कब से खड़ा दो जून रोटी का,

आज भी है मसअला दो जून रोटी का।

 

मुफ़्तखोरी बढ़ रही है मुल्क में कितनी,

है मगर क्यों फ़ासला दो जून रोटी का।

 

आप सुनते आ रहे हैं सात दशकों से,

ख़त्म होगा मुद्दआ दो जून रोटी का।

 

ऐ महल वालों कभी फुर्सत मिले तुमको,

हाल क्या है सोचना दो जून रोटी का।

 

आपकी हालत सुधरती ही गई लेकिन,

दायरा कुछ घट गया दो जून रोटी का।

 

दूरियां बढ़ती गई लब से निवालों की,

खूब नारा तो लगा दो जून रोटी का।

 

हम ग़रीबों को मिले 'आशीष' थोड़ा सा,

अब यहां पर आसरा दो जून रोटी का।

 

आशीष दशोत्तर

संपर्क : +91 9827084966